मेडिकल वेस्ट की दरों पर सस्पेंस बरकरार दरों के लिए पर्यावरण विभाग देख रहा राह
मेडिकल वेस्ट के उत्पादन से निष्पादन तक जुड़े सभी जिम्मेदारी अपनी लापरवाह शैली का प्रदर्शन कर रहे हैं

रायपुर . प्रशासकीय कार्यों की सुस्त रफ्तार से पर्यावरण पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। आलम एेसा है, कि मेडिकल वेस्ट के उत्पादन से निष्पादन तक जुड़े सभी जिम्मेदारी अपनी लापरवाह शैली का प्रदर्शन कर रहे हैं। एक ओर प्रशासन तीन माह में अंतिम दरों पर मुहर नहीं लगा पाया है, वहीं दरों के अभाव में कंपनी को सैकड़ों संस्थानों से कचरा नहीं मिल रहा है।
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दरों पर पत्रिका से चर्चा करते हुए स्वास्थ्य संचालक रानू साहू ने शनिवार को निर्धारित कर पर्यावरण को भेजे जाने की बात कही थी, जबकि पर्यावरण के अधिकारी सोमवार को भी इस दस्तावेज राह देखते रहे। इनके साथ ही कुछ संस्थान कंपनी की कार्यशैली पर भी सवाल उठा रहे हैं, उनका कहना है, कि वहां से रोजाना वेस्ट का कलेक्शन नहीं हो रहा है। वहीं कंपनी की दलील है, कि उनकी ओर से 12 गाडि़यों से रोजाना नियमानुसार वेस्ट संस्थानों से लिया जा रहा है।
एेसे में प्रदेश के दो बड़े संभागों से आने वाले हजारों अस्पतालों से निकलने वाले कचरे से पर्यावरण को नुकसान से नहीं नकारा जा सकता। एक ओर प्रशासन तीन माह में अंतिम दरों पर मुहर नहीं लगा पाया है, वहीं दरों के अभाव में कंपनी को सैकड़ों संस्थानों से कचरा नहीं मिल रहा है।
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बिना किसी दस्तावेज के चल रहा काम
दोनों ही विभागों की ओर से पुरानी कंपनी की दरों को अंतिम होने की दलील दी जा रही है, जबकि इसकी वास्तविक दरें कहीं देखने को नहीं मिल रही हैं। इसके लिए पर्यावरण और स्वास्थ्य विभाग निजी और शासकीय अस्पतालों द्वारा पिछली कंपनी को किए गए भुगतान पर निर्भर हैं। वहीं इस पूरी प्रक्रिया में दोनों ही विभागों ने तीन माह से अधिक का समय बर्बाद कर दिया, जिसमें 80 दिनों में निकलने वाले 160 टन से अधिक वेस्ट का आधा हिस्सा पर्यावरण के बीच पड़ा है।
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