बिजी रहने का दिया मंत्र
लिम्का बुक होल्डर वर्षिता डागा ने कहा कि जरूरी नहीं कि क्लास में पढ़ाने वाला ही आपका शिक्षक हो। जो भी ज्ञान दे वह गुरु होता है। मेरी लाइफ में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण योगदान मेरी नानी स्व. अंब्रीबाई और मम्मी शशि का है। जब मैं अपनी नानी से बोलती थी कि मैं बोर हो रही हूं तो उनका कहना होता था कि बोरियत शब्द होना ही नहीं चाहिए। क्योंकि दुनिया में करने के लिए बहुत कुछ है।
हिम्मत न हारने का हौसला दिया
अंतर्राष्ट्रीय ओडिसी डांसर पूर्णाश्री राउत ने कहा कि मुझे बचपन से ही शास्त्रीय संगीत की तरफ रुझान था, लेकिन मेरे पिता को यह सब चीजें पसंद नहीं थी। मेरी बुआ कुमकुम महंती जो पद्मश्री है, उन्होंने मुझे हौसला दिया और कहा कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो हिम्मत न हारो। उनकी इसी बात को ध्यान में रखकर मैं आगे बढ़ती गई। इसके बाद मेरे नृत्य गुरु पद्म विभूषण केलुचरण महापात्रा और संयुक्ता पणिग्रही ने सपोर्ट किया। जब मैं यूएसए में परफॉर्म करने गई तो मेरी गुरु पद्म विभूषण सोनल मानसिंह ने कहा कि यादगार तभी बनोगे जब कुछ अलग करके चलोगे। तब से मैं इनोवेशन के लिए प्रयास करती रहती हूं।
आज जो भी हूं, टीचर्स की वजह से हूं
गिटारिस्ट कन्हैया सिंह ठाकुर (पप्पू) ने कहा कि मुझे बचपन से ही म्यूजिक के प्रति लगाव था और गिटार बजाना अच्छा लगता था। जब मैं तैयारी कर रहा था तब मेरे दो शिक्षकों प्रशांत दास और रोमियो जैकब ने मुझे सिखाने में जी जान से मेहनत की है। मुझे याद है कि प्रैक्टिस के दौरान मैं हार मान लेता था मगर मेरे टीचर्स ने हमेशा मोटिवेट किया। उनकी बदौलत मैं कपिल शर्मा के शो तक पहुंचा और शो में एक साल तक गिटार बजाई। बाद में सारेगामा लिटिल चैंप सीजन-5 के लिए सिलेक्ट हुआ। आज जो भी हूं अपने टीचर्स की वजह से हूं।
परंपराओं में अंतर आया है
एचएनएलयू के वाइस चांसलर प्रो. सुखपाल सिंह ने कहा कि अगर हम पहले के समय की तुलना करें तो आज शिक्षा में कई बदलाव हुए हैं। नई तकनीक का विस्तार भी किया गया है। वहीं शिक्षक और छात्रों के संबंध की बात करें तो थोड़ी परंपराओं में अंतर आया है। पहले शिक्षक का सम्मान गुरु के तौर पर होता है। आज केवल वह पढ़ाने वाला शिक्षक ही है।
संबंधों में कमी आई है
रिटायर्ड शिक्षक लक्ष्मण प्रसाद वर्मा ने कहा कि मैं महावीर स्कूल में पढ़ाई करता था। मेरे दोस्त सप्रे स्कूल में पढ़ते थे। एक बार सप्रे स्कूल के प्रिंसिपल बी सिंह वहां से निकले तो हम लोग छुप गए। जबकि वे दूसरे स्कूल के प्रिंसिपल थे। मेरे बताने का आशय है कि एक आदर जो होता था शिक्षक का वह माता-पिता से बढ़कर था। आज उन मधुर संबंधों में कमी आई है।
व्यावहारिक शिक्षा देना जरूरी
डेयरी कॉलेज डीन डॉ. सुधीर उपरित ने कहा कि आज शिक्षक वर्ग भी उस लेवल का शिक्षा देने का प्रयास नहीं करते जैसा जो छात्र के जीवन में कारगर साबित हो। वहीं छात्र भी इ-स्टडी पर भी डिपेंड हो गए हैं जो शिक्षकों के महत्व को कम कर देते हैं। क्योंकि उन्हें नॉलेज का सोर्स इंटरनेट से मिल जाता है। दोनों वर्ग इसके लिए जवाबदेह हैं। छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक शिक्षा देनी चाहिए।