त्योहार का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्वधार्मिक… इसी दिन जन्मे थे श्रीकृष्ण के भाई बलराममान्यता है कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी यानी हलषष्ठी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का जन्म हुआ था। हलषष्ठी को खमरछठ, कमरछठ, हलछठ या चंदनछठ भी कहा जाता है। हल बलराम जी का प्रमुख हथियार है। इसलिए इस दिन कृषि औजारों की पूजा होती है। इसलिए इस दिन हल से जुते हुए खेत या जमीन पर उगा अन्न नहीं खाया जाता। गौ माता के दूध-दही या घी का इस्तेमाल भी वर्जित है।[typography_font:14pt;” >रायपुर. माता और संतान के प्रेम को समर्पित कमरछठ (हलषष्ठी) का त्योहार बुधवार को मनाया गया। बच्चे दीर्घायु रहें इसलिए माताओं ने इस दिन सुबह से व्रत रखा था। दोपहर कथा-भजन और पूजन-अनुष्ठान में बिताया। दिनभर की कठिन तपस्या शाम को तब जाकर पूरी हुई जब माताओं ने बच्चों की पीठ पर पीले छुही की पोटली से ममता की थाप मारी। दरअसल, कमरछठ की पूजा से जुड़ी सारी तैयारियां एक दिन पहले ही कर ली गई थीं। घरों के अलावा मोहल्लों में भी 2 गड्ढे खोदकर सगरी (मिट्टी का तालाब) बनाई गई थीं। आसपास कांसी के फूल, बेल, पलाश, गूलर आदि वृक्षों की टहनियां गाडक़र इसे सजाया गया था। दोपहर में सभी व्रती माताएं इसी सगरी के आसपास जुटीं और साथ मिलकर शिव-पार्वती, ग्वाल-ग्लालिन की कथाएं पढ़ी और सुनी। इसके बाद संतान की लंबी उम्र के लिए सभी ने सगरी में जल भरा। इसके पीछे का धार्मिक महत्व बताते हुए पं. मनोज शुक्ला कहते हैं कि जल जीवन का प्रतीक है। यही वजह है कि माताओं ने सगरी में जल भरकर अपने संतान के अच्छे जीवन और लंबी उम्र की कामना की। फिर माताओं ने घर जाकर अपने-अपने बच्चों को पोटली से पीठ पर 6 बार थाप मारी। तब कहीं जाकर दिनभर व्रत तोड़ा। खमरछठ के दिन हल से जुता हुआ अनाज नहीं खाया जाता। इस वजह से बुधवार को ज्यादातर घरों में पसहर चावल बनाया गया। माताओं ने व्रत तोडऩे के बाद दही और विभिन्न प्रकार की सब्जियों के साथ इसी भोजन का सेवन किया। गौरतलब है कि त्योहार होने की वजह से बाजारों में पूरे दिन पसहर चावल की बिक्री होती रही। डिमांड अधिक होने के चलते कहीं-कहीं इसकी कीमत 150 रुपए प्रति किलो तक भी पहुंच गई थी। वैज्ञानिक… उपवास रखने के साथ तोडऩा भी है फायदेमंदकमरछठ व्रत की परंपरा वैज्ञानिकता से परिपूर्ण महिला स्वास्थ्य व पोषण पर आधारित हैं। उपवास रखने से वजन को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है तो उपवास तोडऩे के लिए इस दिन इस्तेमाल किए जाने वाले महुआ समेत सभी प्रकार की भाजियां भी पौष्टिकता से परिपूर्ण होती हैं। पसहर चावल में एंटी-आक्सीडेन्ट अधिक होती है। इसे एंथोसाइएङ्क्षनस भी कहते है। यह शरीर में होने वाली जलन, एलर्जी, कैंसर के खतरे को कम करने में सहायक है।