scriptयहां के लोग ठंड और बेमौसम बारिश से अधिक म’छरों से हैं परेशान, 15 दिन में 14 हजार मलेरिया व 188 डेंगू के मरीज | The people here are troubled by the cold rains, more than mosquitos | Patrika News

यहां के लोग ठंड और बेमौसम बारिश से अधिक म’छरों से हैं परेशान, 15 दिन में 14 हजार मलेरिया व 188 डेंगू के मरीज

locationरायपुरPublished: Jan 04, 2020 07:18:13 pm

Submitted by:

Dhal Singh

सर्द मौसम और बेमौसम बारिश से एक ओर जहां लोग घरों में दुबके हैं, वहीं म’छर बाहर निकलकर डंक मार रहे हैं। इन म’छरों ने अपने आपको 10 डिग्री से कम में जीने का रास्ता भी ढूंढ निकाला है। छत्तीसगढ़ में 2019 के अंतिम माह के दो हफ्तों में मलेरिया के 147&& मरीज और डेंगू के 188 मरीज मिले हंैं। बारिश में म’छरों के लार्वा और अंडों को नष्ट करने के लिए अभियान में लाखों रुपए खर्च के बावजूद म’छरों की बढ़ती संख्या से स्वास्थ्य विभाग भी हैरान है।

यहां के लोग ठंड और बेमौसम बारिश से अधिक म'छरों से हैं परेशान, 15 दिन में 14 हजार मलेरिया व 188 डेंगू के मरीज

छत्तीसगढ़ में बस्तर, सरगुजा संभाग सबसे अधिक प्रभावित

रायपुर. इस साल एक तरफ जहां ठंड दैनिक दिनचर्चा को प्रभावित कर रही है तो दूसरी तरफ म’छरों का आतंक जीना-मुहाल किए हुए है। म’छर अमूमन बरसात में सक्रिय होते हैं क्योंकि यह उनके अनुकूल मौसम होता है। 10 डिग्री से कम तापमान में ये जीवित नहीं रह पाते। मगर आज स्थिति यह है कि मलेरिया और डेंगू के मरीजों बड़ी तादाद में मिल रहे हैं। साल के अंतिम दो हफ्ते में प्रदेश 14733 मलेरिया और डेंगू के 188 मरीज मिले। यह आंकड़ा स्वास्थ्य विभाग के लिए भी चौंकाने वाला है। क्योंकि विभाग बरसात में इनके लार्वा, अंडों को नष्ट करने के लिए अभियान चलाता है।
रायपुर का न्यूनतम तापमान 10 से 15 डिग्री के बीच बना हुआ है, तो बस्तर संभाग में इससे भी कम। मगर म’छरों हर जगह हैं। गौरतलब है कि रायपुर में गर्मी में जब पारा 44 डिग्री था, तब भी म’छर जिंदा थे। शोधों में सामने आया है कि म’छर का जीवन चक्र (लाइफ साइकिल) बदल चुका है, इन्होंने अपने आप को वातावरण के अनुकूल ढाल लिया है।

बस्तर सबसे ज्यादा मलेरिया प्रभावित
प्रदेश का बस्तर संभाग जो माओवाद प्रभावित है, वहां म’छरों का सबसे ज्यादा प्रकोप है। माओवादियों से लड़ रहे जवानों को म’छरों से भी बहुत ज्यादा खतरा है। हर साल जवानों की मौत की खबर आती है। यही वजह है कि 15 जनवरी से बस्तर संभाग में मलेरिया मुक्त बस्तर की शुरुआत होने जा रही है। वेक्टर जनित बीमारियों के राज्य नोड्ल अधिकारी डॉ. सुभाष मिश्रा का कहना है कि प्रजनन काल से पहले अभियान जरूरी है, ताकि इनके प्रकोप को कम किया जा सके।
क्वाइल, लिक्विड भी बेअसर
वाणिज्यिक कर विभाग छत्तीसगढ़ में उपायुक्त एवं म’छरों पर शोधकर्ता डॉ. कमल नाइक के अनुसार म’छर आठ से 10 डिग्री तापमान में जीवित नहीं रह सकते, मगर हैं। इन पर डीडीटी पाउडर भी बेअसर है। यही वजह है कि निकायों ने छिड़काव की मात्रा बढ़ाई। हम आज म’छर मारने के जितने भी आधुनिक तरीकों जैसे म’छर मारने वाली क्वाइल, लिक्विड, अगरबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे एक समय के बाद प्रभावी नहीं रह जाती। यही वजह है कि कंपनियां अपने उत्पाद के एडवांस वर्जन लांच करती हैं।
म’छरों के बारे में तथ्य
– सिर्फ मादा म’छर खून चूसती है, नर नहीं।
-म’छर एक बार डंक मरने पर 0.001 से 0.1 मिलीलीटर तक खून चूसते हैं।
– मादा म’छर अपने जीवन काल में 500 अंडे देती है।
– मलेरिया से हर साल 10 लाख लोगों की जान जाती है।
– विश्व में 3500 हजार प्रजातियां हैं म’छरों की।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
प्रो. एमएल नायक, सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं म’छरों पर प्रमुख शोधकर्ता का कहना है कि म’छर को लगता है कि तापमान उनके अनुकूल नहीं हैं तो वे ऐसे क्षेत्रों का चयन करते हैं, जहां छिप सकें। हम ठंड की वजह से कमरों को बंद रखते हैं तो वे कमरे में छिपे होते हैं। मैंने शोध में पाया है कि रायपुर में म’छरों की 27 प्रजातियां हैं, इन पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है।
प्रो. एके पति, कुलपति, गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय संभलपुर ओडिशा एवं जंतु विशेषज्ञ के मुताबिक म’छर का जीवन-चक्र एक माह का होता है। यही वजह है कि नई पीढ़ी में लगातार प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जाती है।ये 10 डिग्री हो या 45 डिग्री खुद को जीवित रख पा रहे हैं।
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