वाणिज्यिक कर विभाग छत्तीसगढ़ में उपायुक्त एवं म’छरों पर शोधकर्ता डॉ. कमल नाइक के अनुसार म’छर आठ से 10 डिग्री तापमान में जीवित नहीं रह सकते, मगर हैं। इन पर डीडीटी पाउडर भी बेअसर है। यही वजह है कि निकायों ने छिड़काव की मात्रा बढ़ाई। हम आज म’छर मारने के जितने भी आधुनिक तरीकों जैसे म’छर मारने वाली क्वाइल, लिक्विड, अगरबत्ती का इस्तेमाल कर रहे हैं, वे एक समय के बाद प्रभावी नहीं रह जाती। यही वजह है कि कंपनियां अपने उत्पाद के एडवांस वर्जन लांच करती हैं।
– सिर्फ मादा म’छर खून चूसती है, नर नहीं।
-म’छर एक बार डंक मरने पर 0.001 से 0.1 मिलीलीटर तक खून चूसते हैं।
– मादा म’छर अपने जीवन काल में 500 अंडे देती है।
– मलेरिया से हर साल 10 लाख लोगों की जान जाती है।
– विश्व में 3500 हजार प्रजातियां हैं म’छरों की।
प्रो. एमएल नायक, सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं म’छरों पर प्रमुख शोधकर्ता का कहना है कि म’छर को लगता है कि तापमान उनके अनुकूल नहीं हैं तो वे ऐसे क्षेत्रों का चयन करते हैं, जहां छिप सकें। हम ठंड की वजह से कमरों को बंद रखते हैं तो वे कमरे में छिपे होते हैं। मैंने शोध में पाया है कि रायपुर में म’छरों की 27 प्रजातियां हैं, इन पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है।