scriptजीवन में न हो राग-द्वेष की गांठ, ये हमारी सरलता और सहजता को कर देती है भंग | There should be no lumps of malice in life, it breaks our simplicity | Patrika News

जीवन में न हो राग-द्वेष की गांठ, ये हमारी सरलता और सहजता को कर देती है भंग

locationरायपुरPublished: Oct 18, 2019 06:22:55 pm

क्षुल्लक यानी नवीन साधु। क्षुल्लक निरग्रंथीय अर्थात् साधु को या क्षुल्लक को निरग्रंथीय यानि गांठरहित होना चाहिए। जीवन में राग-द्वेष की गांठ नहीं होनी चाहिए। अक्सर राग की गांठ दिखती नहीं है लेकिन वह गांठ हमारी सरलता, सहजता, शांति को भंग कर देती है। द्वेष होने पर अशांति उत्पन्न होती है और रागी को राग का विक्षोह होने पर अशांति मिलती है। जब तक राग की पूर्ति नहीं हो जाती, तब तक उसकी शांति भंग हो जाती है। अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें तो राग-द्वेष की गठानें बाह्य और आंतरिक दो तरह से बनती हैं। हमारे आस

जीवन में न हो राग-द्वेष की गांठ, ये हमारी सरलता और सहजता को कर देती है भंग

श्री जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में चातुर्मासिक प्रवचन शृंखला

रायपुर. मनीष सागरजी महाराज ने बताया कि महात्मा गांधी रोड़ स्थित श्री जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में महेन्द्र सागरजी महाराज के पावन सानिध्य में उत्तराध्ययन सूत्र के षष्ठम अध्याय ‘क्षुल्लक निरग्रंथीयÓ विषय पर जारी प्रवचन में शामिल होने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि घर, दुकान, शरीर, परिवार सभी बाह्य ग्रंथियां हैं, जिन्हें हमने बाहर से ग्रहण कर रखा है। इन्हें हमने सुख देने वाले या विपत्ति के समय काम आने वाले मानकर इनका परिग्रह किया है पर वास्तव में ये सब विपत्ति में सुख या साथ नहीं देने वाले हैं। जिस समय कर्म उदय में आएंगे तो ये सब बचाने वाले नहीं हैं, जिसने कर्म बांधे हैं भोगना भी उसे ही होगा।
बाह्य परिग्रहों का सबसे बड़ा कारण है हमारा कर्म
बाह्य परिग्रहों का सबसे बड़ा कारण है हमारा कर्म, जिसे कर्म ही संचालित कर रहा है। बाह्य परिग्रहों को इतना अधिक प्रभाव आप पर हो चुका है कि उसके द्वारा आपका मन भी संचालित होने लगा है। परिग्रह के मिलने पर आप राग करते हैं और न मिलने पर द्वेष। यही मन या भावनाओं का परिग्रह है। इसे अन्त: या आभ्यांतर परिग्रह कहा गया है। प्रभु परमात्मा ने मन के परिग्रह पर विजय प्राप्त की और मन के परिग्रह अर्थात् आभ्यांतर परिग्रह का पहले त्याग किया। संसारी मनुष्य के मन में बसे परिग्रह छूटे नहीं छूटते। पूज्य मुनिश्री ने आगे कहा कि जिन बाह्य परिग्रहों को मनुष्य अपने जीवन में सेट करने में लगा हुआ है, वे परिग्रह ही उसकी गांठें हैं। जो भविष्य में उसे दुख ही देने वाली हैं। यदि उसके कर्म ही दीवाला हो जाएं तो परिग्रह तो क्या जीवन से भी हाथ धोना पड़ सकता है।
पूज्य मुनिश्री ने कहा कि बाह्य परिग्रह के आधार पर व्यक्ति खुशी और दुखी होता रहता है, यह सब उसकी कोरी कल्पनाएं ही हैं। व्यक्ति की लालसा, राग-द्वेष, मोह यह उसका आंतरिक या आभ्यांतर परिग्रह है। प्रभु परमात्मा ने साधुजनों से कहा कि आप निरग्रंथ हैं, इस संसार में रहते हुए भी आप भटको नहीं, निरग्रंथ ही बने रहो, अपनी ग्रंथी न बढ़ाओ। गृहस्थ दिनभर बाह्य ग्रंथियों के बीच ही रहता है, इसी वजह से उसके भीतर मन में अंतरंग परिग्रह प्रकट होते रहते हैं। जो सत्य हपरमात्मा ने बताया है, उसे जानकर, उस पर श्रद्धा कर अज्ञान और ग्रंथियों को दूर किया जा सकता है।
भक्ताम्बर हीलिंग से असाध्य बीमारियों का इलाज 21 को
चातुर्मास समिति के उपाध्यक्ष व प्रचार प्रसार संयोजक तरूण कोचर ने बताया कि 21 अक्टूबर को प्रवचन सभा के समय सुबह 9 से 11 बजे के बीच भक्ताम्बर हीलिंग के माध्यम से असाध्य बीमारियों के इलाज पर नागपुर से डॉ. मंजू जैन व डॉ. अर्चना जैन का विशेष व्याख्यान और भक्ताम्बर हीलिंग से बीमारियां दूर करने के उपाय बताए जाएंगे। 29 अक्टूबर को भगवान महावीर के निर्वाण दिवस पर श्रीऋषभदेव जैन श्वेताम्बर मंदिर, सदर बाजार में सुबह 4 बजे भगवान को निर्वाण लाड़ू अर्पित किया जाएगा। इसके पश्चात् श्रद्धालू प्रभात फेरी के रूप में जैन दादाबाड़ी एमजी रोड पहुंचेंगे, जहां प्रात: 6 बजे पूज्य गुरू भगवंत के श्रीमुख से गौतम रास का वाचन होगा। 10 नवम्बर को सामूहिक जीव राशि क्षमापणा का कार्यक्रम होगा। साथ ही श्रावक-श्राविकाओं को इस दिन 12 व्रतों को धारण करने का अवसर भी प्राप्त होगा।
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