आइडिया: टोन हिंदुस्तानी लेकिन सबकुछ विदेशी एक सुबह मैं उठा तो पाया कि हमारी रिंग टोन तो फिर भी दिल है हिंदुस्तानी है लेकिन ब्रश लेकर रात के सोने तक की सारी चीजें हम विदेश यूज करते हैं। ऐसी ही घटना मेरे ऑफिस में घटी। किसी ने कहा कि इंडियन फूड मार्केट में घुसना मुश्किल है। मेरे पूछने पर उनका कहना था कि इंडियन को अभी भी अपना स्पाइसी फूड चाहिए। तभी आइडिया आया कि अगर मैं 10 रुपए का प्रोडक्ट बनाऊं और सालभर में 50 करोड़ लोगों को बेच दूं। इस तरह मैंने फूड बिजनेस हमने फूड बिजनेस में जाना तय किया। चुनौती यह थी कि ऐसे क्या बनाएं जिसे सब खाएं। क्योंकि देश में हर तीन किमी में पानी और वाणी दोनों बदल जाते हैं।
विजन: पांच मिनट में परोस दिए 50 वडा पाव मैंने 15 साल कॉर्पोरेट फाइनेंस क्षेत्र में काम किया है। एक दिन ऑफिस से बाहर मैं वड़ा पाव खा रहा था। तभी बर्गर का एक नया स्टोर खुला था जिसमें 40 फीट के बर्गर की फोटो लगी थी। मैंने कहा दोनों एक तरह की चीजें हैं ेलेकिन एक भाई मुंबई की गलियों में रह गया और दूसरा अमरीका पहुंच गया। उसी वक्त दिमाग में कौंधा कि आधुनिकता के चलते बर्गर ब्रांड बन गया। दूसरी बात ये थी कि देश में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है लिहाजा बाहर का खाना आने लगा है। वैसे भी पांच मिनट में आप कितने डोसे या सैंडविच बना सकते हैं। जाहिर है चार या पांच। लेकिन रोड पर वडा बेचने वाला 5 मिनट में 50 वडा सर्व करता है। यही एक ऐसा फूड है जो बिना तामझाम के बेचा जा सकता है।
चुनौती: 2008 में मार्केट क्रैश हुआ, कोई पैसे देने को तैयार नहीं था हमारे सामने चुनौती थी कि इसे पैन इंडिया कैसे बनाया जाए। तब हमने तय किया कि आलू तो हर जगह खाया जाता है। इसलिए हमने आलू को मॉडल बनाया और इसकी मार्केर्टिंग की। रही बात नाम की तो देसी टच लाने के मकसद से गोली शब्द जोड़ दिया। इसके अलावा फाइनेंस की भी परेशानी आई। कल्याण में तो हमने 15 हजार रुपए किराए के साथ दुकान खोल दी लेकिन ठाणे और दादर में किराया डेढ़ लाख रुपए था। फिर हमें गुमटियों का आइडिया आया। कुछ पॉलिटिकल कंट्रोवर्सी भी हुई लेकिन इससे हमारी जमकर पब्लिसिटी भी हुई। फंड इक_ा करना बड़ी टेढी खीर थी। 2008 में मार्केट क्रैश हुआ। हमने फिर हिम्मत बांधी। फिर नहीं रुके। आज देशभर में 350 स्टोर हैं।