अद्भुत है यह यात्रा, नगर भ्रमण पर निकलते हैं भगवान
यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर रखकर नगर भ्रमण कराया जाता है। इन तीनों रथों में किसी तरह की धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

आषाढ़ माह में शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा आरंभ होती है। इस अद्भुत रथयात्रा से कई रोचक तथ्य जुड़े हुए हैं। जगन्नाथ पुरी को चार धाम में से एक धाम माना जाता है। मान्यता है कि यहां आने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जगन्नाथ पुरी का मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है जहां तीनों भगवान भाई-बहन हैं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा।
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इस यात्रा में भगवान अपनी मौसी के घर जाते हैं। भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर रखकर नगर भ्रमण कराया जाता है। इन तीनों रथों में किसी तरह की धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इनका निर्माण तीन प्रकार की पवित्र लकडिय़ों से किया जाता है। रथ का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया से शुरू किया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रथ 16 पहियों का होता है। रथयात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ होता है और उनके पीछे देवी सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। मान्यता है कि तीनों रथ के दर्शन करने मात्र से ही तमाम दुख दूर हो जाते हैं। जब तक पुरी के राजा आकर सोने की झाडू से रास्ते को साफ़ नहीं करते तब तक भगवान मंदिर से बाहर नहीं निकलते। हर साल इस यात्रा के दिन पुरी में बारिश होती है। रथयात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर दो किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर संपन्न होती है। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति श्रीराधा-श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। भगवान जगन्नाथ को पूर्ण ईश्वर माना गया है। रथों को रस्सियों से खींचते हुए ले जाया जाता है। रस्सी को खींचना या हाथ लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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