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सिर्फ 10 फीसदी बचने की थी उम्मीद रिस्क लेकर डॉक्टरों ने ऐसे बचाई महिला की जान

locationरायपुरPublished: Nov 15, 2018 11:12:57 am

Submitted by:

Deepak Sahu

छत्तीसगढ़ में सभवत: यह पहला मामला है कि हार्ट के पीछे के बने ट्यूमर की सफल सर्जरी हुई है

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सिर्फ 10 फीसदी बचने की थी उम्मीद रिस्क लेकर डॉक्टरों ने ऐसे बचाई महिला की जान

रायपुर. आंबेडकर अस्पताल के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के कार्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग के एचओडी कृष्णकांत साहू और उनकी टीम ने 1 नवम्बर को करीब तीन घंटे की सर्जरी के बाद महिला के हार्ट के पीछे से करीब साढ़े तीन किलो के ट्यूमर को सफलतापूर्वक निकालकर महिला की जान बचा ली। छत्तीसगढ़ में सभवत: यह पहला मामला है कि हार्ट के पीछे के बने ट्यूमर (पोस्टेरियर मेडिस्टाइनल ट्यूमर) की सफल सर्जरी हुई है।
मुंगेली जिले के प्रहदा निवासी जितेंद्र की पत्नी पुनीताबाई साहू को पिछले चार माह से सांस लेने, भोजन निगलने तथा खांसी की समस्या थी। उसने निजी अस्पतालों में काफी उपचार कराया, लेकिन फर्क नहीं पड़ा।
वह मुंगेली जिला अस्पताल पहुंची तो वहां के डॉक्टरों ने एक्स-रे कराया तो हार्ट के पास गांठ जैसा कुछ दिखा तो उन्होंने उसे सिम्स रेफर कर दिया। वे सिम्स के एचओडी डॉ. लखन सिंह के पास पहुंची। वहां सीटी स्कैन में पता चला कि हार्ट के पीछे ट्यूमर है। डॉ. सिंह ने सिम्स में माह के दूसरे शुक्रवार व शनिवार को सेवा देने वाले डॉ. कृष्णकांत साहू के पास महिला को उपचार के लिए भेज दिया। डॉ. साहू ने महिला को आम्बेडकर अस्पताल के कार्डियो थोरेसिक सर्जरी विभाग में भर्ती होने की सलाह दी।

इस तरह हुई सर्जरी
डॉक्टर साहू ने बताया कि चूंकि ट्यूमर हार्ट के ठीक पीछे से निकलकर दायें फेफड़े तक फैला हुआ था, इसलिए दायें फेफड़े के पांचवी पसली के ऊपर चीरा लगाकार फेफड़े के अंदर प्रवेश किया गया। दायें फेफड़े को बचाते हुए और ट्यूमर से अलग करते हुए हार्ट के पीछे सावधानीपूर्वक पहुंचा गया।

ट्यूमर को आसपास के टिश्यू से अलग करते हुए ट्रेकिया और इसोफेगस से बहुत ही सावधानी पूर्वक अलग किया गया। हार्ट को सुरक्षित बचाते हुए डायफ्रॉम की गतिशीलता को नियंत्रित करने वाले फेनिक नर्व को बचा लिया गया। ऑपरेशन के दौरान सुपीरियर वेन्कॉवा (शरीर से अशुद्ध रक्त को लेकर आने वाली नली) और एफाइगस वेन को रिपेयर किया गया, क्योंकि ट्यूमर इन सभी नसों के साथ चिपका हुआ था। मरीज को कोई नुकसान नहीं हुआ।

नि: शुल्क उपचार
डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि महिला का संजीवन कोष के तहत उपचार किया गया, जिससे पीडि़त पर कोई आर्थिक दवाब नहीं आया। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन में उनके साथ डॉ. रमेश (जूनियर रेसीडेंट सर्जरी), रेडियोडॉग्नोसिस के डॉ. विवेक पात्रा, एनेस्थिसिया विशेषज्ञ ओपी सुंदरानी और नर्सिंग स्टॉफ राजेंद्र और चोवा राम की महत्वपूर्ण भूमिका रही। डॉ. साहू ने बताया कि यदि निजी अस्पतालों में ऑपरेशन कराया जाता तो करीब 3 से 4 लाख रुपए खर्च हो गए होते।

सर्जरी ही एकमात्र विकल्प
डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि ट्यूमर को निकालने में ज्यादा रिस्क था। 90 फीसदी महिला के जान जाने तथा सिर्फ 10 फीसदी ही उसके बचने की संभावना थी। महिला और उसके पति जितेंद्र को रिस्क की जानकारी देते हुए बताया गया कि ऑपरेशन के दौरान लकवा हो सकता है या फिर फेफड़ा निकालना पड़ सकता है। दंपती फिर भी ऑपरेशन कराने तैयार हो गए।

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