इस तरह हुई सर्जरी
डॉक्टर साहू ने बताया कि चूंकि ट्यूमर हार्ट के ठीक पीछे से निकलकर दायें फेफड़े तक फैला हुआ था, इसलिए दायें फेफड़े के पांचवी पसली के ऊपर चीरा लगाकार फेफड़े के अंदर प्रवेश किया गया। दायें फेफड़े को बचाते हुए और ट्यूमर से अलग करते हुए हार्ट के पीछे सावधानीपूर्वक पहुंचा गया।
नि: शुल्क उपचार
डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि महिला का संजीवन कोष के तहत उपचार किया गया, जिससे पीडि़त पर कोई आर्थिक दवाब नहीं आया। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन में उनके साथ डॉ. रमेश (जूनियर रेसीडेंट सर्जरी), रेडियोडॉग्नोसिस के डॉ. विवेक पात्रा, एनेस्थिसिया विशेषज्ञ ओपी सुंदरानी और नर्सिंग स्टॉफ राजेंद्र और चोवा राम की महत्वपूर्ण भूमिका रही। डॉ. साहू ने बताया कि यदि निजी अस्पतालों में ऑपरेशन कराया जाता तो करीब 3 से 4 लाख रुपए खर्च हो गए होते।
सर्जरी ही एकमात्र विकल्प
डॉ. कृष्णकांत साहू ने बताया कि ट्यूमर को निकालने में ज्यादा रिस्क था। 90 फीसदी महिला के जान जाने तथा सिर्फ 10 फीसदी ही उसके बचने की संभावना थी। महिला और उसके पति जितेंद्र को रिस्क की जानकारी देते हुए बताया गया कि ऑपरेशन के दौरान लकवा हो सकता है या फिर फेफड़ा निकालना पड़ सकता है। दंपती फिर भी ऑपरेशन कराने तैयार हो गए।