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मौत के बीच ज़िन्दगी: 14 दिन आइसोलेशन वार्ड में मां के साथ रहीं बच्चियां, इन्हें कोरोना छू तक न सका…

locationरायपुरPublished: Jun 04, 2020 07:41:09 pm

Submitted by:

Karunakant Chaubey

दूसरी तरफ उन्हें यह भी ध्यान रखना होता है कि बच्चे संक्रमित न हों। ‘पत्रिका’ ने डॉक्टरों से बात की। इन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में मां संक्रमित हो और बच्चा स्वस्थ्य हो, या बच्चा संक्रमित हो और मां स्वस्थ्य हो। इन्हें अन्य मरीजों से अलग वार्ड में रखा जाता है।

- - दिसम्बर तक बढ़ाई नियोजन अवधि

– – दिसम्बर तक बढ़ाई नियोजन अवधि

रायपुर. प्रदेश में कोरोना मरीजों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। अब तो मौत का आंकड़ा भी दो पहुंचा चुका है। कोरोना संकट गहराता जा रहा है। मगर, इन सबके बीच कोविड-19 हॉस्पिटल माना से राहत भरी अच्छी खबर निकलकर सामने आई है। माना में मुंगेली की दो कोरोना संक्रमित मां के साथ पूरे 14 दिन तक आईसोलेशन वार्ड में रहीं बच्चियां (एक साल और तीन साल) पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इन्हें कोरोना छू तक नहीं सका। दोनों मां को बुधवार को छुट्टी दे दी गई, जिनकी गोदी में हंसती-खेलती बच्चियां घर लौटीं।

मगर, ऐसे मामले बेहद चुनौतीपूर्ण होते हैं। क्योंकि एक तरह डॉक्टर, मां को उनके बच्चों से अलग नहीं कर सकते, यहां बात संवेदनाओं और भावनाओं की होती है। वहीं दूसरी तरफ उन्हें यह भी ध्यान रखना होता है कि बच्चे संक्रमित न हों। ‘पत्रिकाÓ ने डॉक्टरों से बात की। इन्होंने बताया कि ऐसे मामलों में मां संक्रमित हो और बच्चा स्वस्थ्य हो, या बच्चा संक्रमित हो और मां स्वस्थ्य हो। इन्हें अन्य मरीजों से अलग वार्ड में रखा जाता है। क्योंकि जो संक्रमित नहीं हैं उसे संक्रमण से बचाए रखना है। बच्चों छोटे होते हैं तो उन्हें खेलने-कूदने के लिए ज्यादा जगह चाहिए। अगर वे सामान्य वार्ड में होंगे तो मुश्किल होगी। वार्ड में बच्चों के लिए खिलौने भी रखे जाते हैं। हर २४ घंटे में बुखार नापा जाता है। पूरी जांच की जाती है। जरा भी शंका होती है तो सैंपलिंग की जाती है। १३वें दिन जब दोनों की रिपोर्ट निगेटिव आती है तब छुट्टी दी जाती है। जैसा माना में दी गई। हालांकि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सबके बीच डॉक्टरों की सबसे अहम भूमिका है, जो रात-दिन से जुटे हुए हैं।
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एम्स में संक्रमित बच्चों के साथ मां- एम्स में मामला उल्टा है। यहां दो संक्रमित बच्चे हैं, जिनकी उम्र एक साल और साढ़े तीन साल की है। बच्चे इतने छोटे हैं कि उन्हें संभाल पाना स्टॉफ के लिए मुश्किल भरा काम होता। इसलिए निर्णय लिया गया कि बच्चों के साथ उनकी मां को रखा जाए। कोरोना मामलों के नोडल अधिकारी डॉ. अजॉय बेहरा ने बताया कि मां को पूरा प्रोटेक्शन दिया जाता है। जैसे- एन९५ मॉस्क, गाउन और हैंड ग्लब्स है। हर एक घंटे हाथ साबून से धोने के लिए कहा जाता है, इसकी भी मॉनीटरिंग की जाती है। ये बच्चे भी तेजी से रिकवर कर रहे हैं।
एक्सपर्ट व्यू-

डॉ. अतुल जिंदल, असिस्टेंट प्रोफेसर, शिशुरोग विभाग, एम्स रायपुर

– देखिए, जब छोटे बच्चे को कोरोना होता है या ऐसी मां को जिनके बच्चे छोटे हैं तो आपको दोनों को एक साथ रखना ही पड़ता है। हालांकि अभी तक कोई शोध नहीं हुआ है, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप से एक सकारात्मक प्रभाव तो पड़ता ही है। मां ‘नर्स’ की भूमिका में होती है। वह स्तनपान भी करवा सकती है, इससे कोई खतरा नहीं होता। यह तो बच्चे के स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा होता है। बच्चों में रोगों से लडऩे की क्षमता बढ़ती है।

आप मां और उनके बच्चों को एक-दूसरे से अलग नहीं कर सकते। माना में मुंगेली के दो ऐसे ही प्रकरण थे। बच्चे मां के साथ रहे, मगर संक्रमित नहीं हुए। ऐसे मामलों को लेकर प्रोटोकॉल तय है उसका पालन किया जाता है।

डॉ. निर्मल वर्मा, अतिरिक्त संचालक एवं प्रवक्ता, चिकित्सा शिक्षा संचालनालय

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