स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि घटना की सूचना मिलते ही विभाग की टीम स्थल पर पहुंचकर बायोमेडिकल वेस्ट को साफ कराया गया। बायोमेडिकल वेस्ट फेंकने वाले की पता करने के लिए जांच की जा रही है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार यहां पर काफी दिनों से बायोमेडिकल वेस्ट फेंका जा रहा था, लेकिन न स्वास्थ्य विभाग ध्यान दे रहा था और ना ही नगर निगम के जिम्मेदारी अधिकारी इसकी सुध ले रहे थे। करीब एक गाड़ी कचरा यहां पर काफी दिनों से फेंका जा रहा था।
लापरवाही बरत रहे लोग
कोरोना महामारी से बचने के लिए लोग मास्क, पीपीई और ग्लब्स जैसे चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर कई लोग लापरवाही से उसे खुले में फेंक दे रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, खुले बायोमेडिकल वेस्ट फेंके जाने से न केवल संक्रमण का खतरा रहता है, बल्कि पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है। पीपीई किट, ग्लब्स और मास्क आदि इको फ्रेंडली नहीं होते हैं। इससे जानवर में भी संक्रमण का खतरा रहता है। कूडा-कचरा बीनने वालों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। रायपुर के बीरागांव क्षेत्र में विगत दो दिनों में दो कचरा उठाने वाली संक्रमित मिल चुकी हैं।
कोरोना महामारी से बचने के लिए लोग मास्क, पीपीई और ग्लब्स जैसे चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मगर कई लोग लापरवाही से उसे खुले में फेंक दे रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, खुले बायोमेडिकल वेस्ट फेंके जाने से न केवल संक्रमण का खतरा रहता है, बल्कि पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंचता है। पीपीई किट, ग्लब्स और मास्क आदि इको फ्रेंडली नहीं होते हैं। इससे जानवर में भी संक्रमण का खतरा रहता है। कूडा-कचरा बीनने वालों में भी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। रायपुर के बीरागांव क्षेत्र में विगत दो दिनों में दो कचरा उठाने वाली संक्रमित मिल चुकी हैं।
मरीज की तरह वेस्ट से संक्रमण का खतरा
डॉक्टरों का कहना है कि बायोमेडिकल वेस्ट से भी कोरोना वायरस के फैलने का उतना ही डर है, जितना संक्रमित मरीज के आसपास जाने से होता है। कोविड-19 की गाइडलाइन के तहत बायोमेडिकल वेस्ट का नियमों के तहत डिस्पोजल जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग के एक आला अधिकारी का कहना है कि अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में काले, लाल, पीले व सफेद रंग के डस्टबिन रखे गए हैं।
डॉक्टरों का कहना है कि बायोमेडिकल वेस्ट से भी कोरोना वायरस के फैलने का उतना ही डर है, जितना संक्रमित मरीज के आसपास जाने से होता है। कोविड-19 की गाइडलाइन के तहत बायोमेडिकल वेस्ट का नियमों के तहत डिस्पोजल जरूरी है। स्वास्थ्य विभाग के एक आला अधिकारी का कहना है कि अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में काले, लाल, पीले व सफेद रंग के डस्टबिन रखे गए हैं।
अलग रखने का है प्रावधान
एम्स के पूर्व अधीक्षक डॉ. करन पीपरे का कहना है कि पीपीई किट को इस्तेमाल के बाद हाइपोक्लोराइट के घोल में डुबाकर रखना चाहिए। बाद में इसे काले बैग में पैक करना चाहिए। कोविड-19 मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के तहत इस कूड़े को अलग गाड़ी से फेंकने का प्रावधान है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस प्लास्टिक व एल्युमिनियम पर कम से कम 5 दिन, कांच व लकड़ी पर 4 दिन और ग्लब्स पर 4 घंटे तक सक्रिय रह सकता है।
एम्स के पूर्व अधीक्षक डॉ. करन पीपरे का कहना है कि पीपीई किट को इस्तेमाल के बाद हाइपोक्लोराइट के घोल में डुबाकर रखना चाहिए। बाद में इसे काले बैग में पैक करना चाहिए। कोविड-19 मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट के तहत इस कूड़े को अलग गाड़ी से फेंकने का प्रावधान है। उनका कहना है कि कोरोना वायरस प्लास्टिक व एल्युमिनियम पर कम से कम 5 दिन, कांच व लकड़ी पर 4 दिन और ग्लब्स पर 4 घंटे तक सक्रिय रह सकता है।
सूचना मिलते ही कचरा साफ कराया गया। आबादी से दूर था इसलिए किसने फेंका है यह कहना मुश्किल है। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम लगी हुई है। लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है। इधर-उधर बायोमेडिकल वेस्ट फेंकने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ. मीरा बघेल, सीएमएचओ, रायपुर
डॉ. मीरा बघेल, सीएमएचओ, रायपुर
मेडिकल कॉलेज में भी बरती जा रही लापरवाही
कोरोना वायरस से बचाव में इस्तेमाल होने वाले पीपीई किट, फेस शील्ड हैंड ग्लब्स और मास्क को लेकर मेडिकल कॉलेज में भी लापरवाही बरती जा रही है, जिससे संक्रमण के फैलने की आशंका जताई जा रही है। मेडिकल कॉलेज के एक कर्मचारी ने बताया कि यहां पर कोविड-19 सैंपल की जांच की जाती है, जिसमें डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ जुटे हुए है। डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ पीपीई किट, फेस शील्ड, हैंड ग्लब्स और मास्क आदि का इस्तेमाल करते है। इस्तेमाल करने के बाद सभी सामानों को वह काले पॉलीथिन में भरकर रख देते हैं। कर्मचारी जब पॉलीथिन को छत से नीचे लेकर आते है, तो वह फट जाती है। मेडिकल कॉलेज कैंपल में नीचे बायोमेडिकल वेस्ट रखा जाता है। पॉलीथिन फटने की वजह से कचरा इधर-उधर फैला रहता है। सुबह या दोपहर में कचरा उठाने वाली गाड़ी आती है, तब तक वह वैसे ही पड़ा रहता है।
कोरोना वायरस से बचाव में इस्तेमाल होने वाले पीपीई किट, फेस शील्ड हैंड ग्लब्स और मास्क को लेकर मेडिकल कॉलेज में भी लापरवाही बरती जा रही है, जिससे संक्रमण के फैलने की आशंका जताई जा रही है। मेडिकल कॉलेज के एक कर्मचारी ने बताया कि यहां पर कोविड-19 सैंपल की जांच की जाती है, जिसमें डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ जुटे हुए है। डॉक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ पीपीई किट, फेस शील्ड, हैंड ग्लब्स और मास्क आदि का इस्तेमाल करते है। इस्तेमाल करने के बाद सभी सामानों को वह काले पॉलीथिन में भरकर रख देते हैं। कर्मचारी जब पॉलीथिन को छत से नीचे लेकर आते है, तो वह फट जाती है। मेडिकल कॉलेज कैंपल में नीचे बायोमेडिकल वेस्ट रखा जाता है। पॉलीथिन फटने की वजह से कचरा इधर-उधर फैला रहता है। सुबह या दोपहर में कचरा उठाने वाली गाड़ी आती है, तब तक वह वैसे ही पड़ा रहता है।