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फिल्मकार वी शांताराम का क्या था रायपुर से कनेक्शन, रायपुर की पहली टाकीज कौन थी, जानिए

मल्टीप्लेक्स ने बिगाड़ा सिंगल स्क्रीन का खेल

रायपुरApr 22, 2018 / 04:54 pm

Tabir Hussain

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raj cinema

ताबीर हुसैन @ रायपुर . एंटरटेनमेंट में सिनेमा शुरू से फस्र्ट पोजिशन पर रहा है। दौर बदला, तकनीक आई, उस हिसाब से फिल्में बनने लगी और डिजिटल रूप से देखी जाने लगी। फिर आया मल्टीप्लेक्स का जमाना। इसने एेसा खिंचाव क्रिएट किया कि लोग बुद्धु बक्से को छोड़ मॉल्स का रुख करने लगे। पिक्चर क्वालिटी से लेकर साउंड सिस्टम हर एंगल में इनोवेशन हुआ और मल्टीप्लेक्स ने सिनेप्रेमियों के दिल में जगह बना ली। इन सबके बीच सिंगल स्क्रीन बेपटरी हो गया। आज के हालात को देखकर इसके भविष्य पर खतरा मंडराता नजर आ रहा है। आज हमने कुछ टाकीज वालों से बात की और जानना चाहा कि आखिर क्यों दर्शकों का रुझान सिंगल स्क्रीन के प्रति घट रहा है।

चैनल हैं दुर्गति की वजह
करीब 5 दशक से डिस्ट्रीब्यूशन वालों के साथ काम कर रहे एमके गुप्ता का कहना है कि बात सिर्फ सिंगल स्क्रीन की ही नहीं है, अलबत्ता मल्टीप्लेक्स भी नुकसान में चल रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है टीवी चैनल। तमाम टीवी चैनल आ चुके हैं। यूथ पूरी तरह इसमें कैप्चर हो चुका है। दूसरा, मोबाइल के एंड्राएड वर्जन ने भी काफी हद तक सिनेमा व्यवसाय पर असर डाला है। अब तो प्रोडेक्शन से लेकर डिस्ट्रीब्यूशन और एग्जिबिशन सभी कार्पोरेट हो चुके हैं।

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मोबाइल ने किया प्रभावित
50 सालों से राज टाकीज के मैनेजर राधेश्याम जोशी कहते हैं, मोबाइल के आने से लोगों का रुझान सिंगल स्क्रीन का रुख नहीं कर रहे। चूंकि मोबाइल में हर वो चीज अवलेबल है जो उनको चाहिए। जोशी ने बताया कि राज टाकीज का नाम पहले राजकमल हुआ करता था। बाद में राज हुआ। वक्त के साथ-साथ तब्दीली आती है। चूंकि जमाना ही डिजिटलाइजेशन का हो गया है। इसलिए थोड़ा फर्क पड़ा है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं कह सकते। अच्छी फिल्में लगती हैं तो आते हैं दर्शक।

जीएसटी ने बिगाड़ा काम
प्रभात टाकीज को किराए पर चला रहे लकी रंगशाही कहते हैं, मल्टीप्लेक्स के आने से दर्शकों को यह फायदा हुआ कि फैमिली के लोग एक साथ मॉल जाते हैं और अपनी-अपनी पसंद की फिल्में देख लेते हैं, जबकि सिंगल स्क्रीन में ये सुविधा नहीं है। हालांकि सिंगल स्क्रीन वालों ने भी कुछ फैसलिटी एड की है जिससे दर्शकों को फायदा हुआ है। ये सब तो ठीक है, लेकिन हमारी समस्या तब बढ़ी जब सरकार ने जीएसटी लागू कर दिया। पहले 50 रुपए तक के टिकट में कोई टैक्स नहीं था। अब हमें 18 परसेंट (9 केंद्र, 9 राज्य) टैक्स देना पड़ रहा है। साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्मों में जो छूट थी वह जीएसटी के चक्कर में खत्म हो गई। इस तरह रायपुर की सिनेमा इंडस्ट्रीज को दोहरा नुकसान हुआ है।

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शोले और जयं संतोषी मां ने बनाए रेकॉर्ड
– राज टाकीज जिसका पुराना नाम राजकमल था, इसका निर्माण प्रख्यात फिल्मकार वी शांता राम ने करवाया था। 15 जनवरी 1946 में थियेटर बना था। पहली फिल्म दहेज लगी थी। 1956 में इसे कमलकिशोर राठी ने खरीदा।
– ‘शोले’ और ‘जय संतोषी मां’ रायपुर में सबसे ज्यादा चलने वाली फिल्में हैं। इसके अलावा राम और श्याम, गोपी, मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन और बागबां भी खूब चली।
– वर्ष 2007 में सिनेमा में यूएफओ का दौर आया।
– थ्रीडी फिल्मों ने लोगों की पहुंच मल्टीप्लेक्स तक बनाई।

ये है सबसे पुरानी टाकीज
शहर की सबसे पुरानी मनोहर टाकीज है, जिसका नाम बाद में शारदा हो गया।
ये सिनेमा हॉल हो चुके बंद: शारदा, बाबूलाल, कृष्णा, जयराम, कृष्णा एडलेब, आनंद

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