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पहचानिए रायपुर का यह कौन सा इलाका जहां दीवार पर है मिनी गार्डन

locationरायपुरPublished: Apr 22, 2019 02:09:43 pm

Submitted by:

Tabir Hussain

वर्ल्ड अर्थ डे पर खास

world earth day 2019

पहचानिए रायपुर का यह कौन सा इलाका जहां दीवार पर है मिनी गार्डन

ताबीर हुसैन @ रायपुर. क्या आप रायपुर के हैं। अगर हां तो यह सवाल आपके लिए हैं। जरा बताइए तो ये कौन सी जगह है जहां दीवार पर गार्डन है। है न सोचने वाली बात। दरअसल इसे वर्टिकल गार्डन कॉन्सेप्ट कहा जाता है। हालांकि यह राजधानी के कई हाई सोसायटीज के घरों में देखने को मिल जाएगा लेकिन किसी शॉप में पहली बार एक्सपेरिमेंट किया गया है। जरूरी नहीं कि जमीन हो तभी हरियाली बिखेरी जाए। अब यह दीवारों में आप ग्रीनरी का मैसेज दे सकते हैं। जी हां। शहर में वर्टिकल गार्डनिंग का क्रेज देखा जा रहा है। लोग अपने घरों में तो इसे लगवा ही रहे हैं शॉप के बाहर की दीवार में भी ग्रीनरी का मैसेज दिया जा सकता है। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि प्रकृति में इतनी ताकत होती है कि वह हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन पृथ्वी कभी भी मनुष्य के लालच को पूरा नही कर सकती है। हमारा धरा को हरा-भरा रखना हर किसी का फर्ज है। हालांकि इस बात पर बहुत कम लोग ध्यान देते हैं। शहर में कुछेक संगठन हैं जिन्हें हरियाली की चिंता है और वे पौधरोपण करते हैं। दुनियाभर में एनवायरमेंट की सेफ्टी के लिए अर्थ डे मनाया जाता है। हालांकि पृथ्वी दिवस की स्थापना अमेरिकी सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। वर्ष 1970 से शुरू हुए इस दिवस को आज पूरी दुनिया के 195 से अधिक देश मनाते हैं। 22 अप्रैल 1970 को आयोजित पहले पृथ्वी दिवस में 20 मिलियन अमेरिकी लोगों ने भाग लिया था जिसमें हर समाज, वर्ग और क्षेत्र के लोग शामिल थे।
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मुंबई एयरपोर्ट में देखा था
सदर रोड स्थित शो रूम के सिद्धार्थ बैद ने बताया कि मुंबई एयरपोर्ट में वर्टिकल गार्डन देखा था जो अब रायपुर पहुंच चुका है। हमने जब शो रूम बनाया उसी वक्त सोच लिया था कि एक ग्रीन वॉल भी होनी चाहिए। इसका मकसद यही था कि एक मैसेज जाए कि पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। चाह ग्राहक हों या राहगीर, जब वे इसे देखें तो उन्हें सुकून का अहसास हो और वे खुद भी इस तरह की पहल अपने स्तर पर करें।

तीन तरह के पौधे, कलर होता है चेंज

सिद्धार्थ ने बताया कि ग्रीन वॉल में तीन तरह के पौधे हैं जिन्हें सिस्टमेटिक तरीके से गमलों में लगाया गया है। इंटरनल पाइपलाइन है जिसमें सुबह और शाम 5 मिनट ऑटोमेटिक सिंचाई हो जाती है। पौधों की खासियत ये है कि वे रंग भी बदलते हैं। गर्मी बढऩे पर पत्तियां हल्की लाल रंग की हो जाती है।

एनआईटी में बनी है गो ग्रीन कमेटी

एनआईटी के छात्र गो ग्रीन के जरिए धरती को हरी-भरी रखने की जुगत में हैं। इसकी शुरुआत वर्ष 2010 में प्रो. समीर वाजपेयी ने की थी। इन दिनों यह प्रभार प्रो. झरिया देख रहे हैं। कमेटी के एग्जिक्यूटिव मेंबर राज सिंह ने बताया कि महीने के दो या तीन शनिवार को हम प्लांटिंग करते हैं। इकोलॉजिकल कॉन्सेप्ट पर काम करते हैं। साल में एक बार ‘पुकार’ कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें ऐसे लोगों को बतौर स्पीकर बुलाते हैं जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण को लेकर उल्लेखनीय कार्य किया है। समीर वाजपेयी, फाउंडर गो ग्रीन क्लब ने बताया कि गो ग्रीन के पीछे सोच यह थी कि ज्यादातर जो पर्यावरण को इंजीनियरिंग या तकनीक के कारण पहुंची है। तरक्की के साथ ही पर्यावरण पीछे छूटता गया। सुविधाएं बढ़ी लेकिन दोहन बड़े पैमाने पर होने लगा। जरूरी था कि भावी इंजीनियर जब कोई नई टेक्नोलॉजी लाएं तो उनके जेहन में यह बात रहे कि एनवायरमेंट को भी ध्यान रखें। इंजीनियर छात्रों का पर्यावरण के प्रति सरोकार हो इसलिए यह क्लब चालू किया गया। ये क्लब न केवल बच्चों को जागरूक करेगा बल्कि पर्यावरण की विभिन्न समस्याएं के समाधान तलाशने की प्रेरणा मिलेगी।
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