बिजनेस स्कूल छोड़ थिएटर से जुड़े
भोजपुर में जन्में पाठक ने बताया कि उनके पिता पुलिस डिपार्टमेंट में थे। हर दो-तीन साल में तबादला होता रहता था। कॉलेज की पढ़ाई के वक्त पिताजी की पोस्टिंग इलाहाबाद (अब प्रयागराज)में हुई। यहां से बीए किया। उनकी दीदी न्यूयार्क में रहती हैं। इसलिए वे न्यूयार्क पहुंच गए और बिजनेस स्कूल में दाखिला ले लिया लेकिन उनका मन थिएटर की ओर खींचा चला गया और वे बिजनेस स्कूल छोड़ ड्रामा की पढ़ाई करने लगे। वर्ष 1995 में मुंबई आए, स्ट्रगल किया। वे टीवी और फिल्मों से दूर रहना चाहते थे। रुझान पूरी तरह थियेटर पर था। मुंबई के हर थियेटर वाले से मिला। एक बार दिल्ली में रंजीत चौधरी से मुलाकात हुई। वे कामसूत्र में रोल कर चुके थे और दीपा मेहता की फायर करने जा रहे थे। इसमें एक छोटा से रोल के लिए उन्होंने मुझस पूछा तो मैंने हां कह दिया। उस मूवी में ताजमहल के टूरिस्ट गाइड का रोल था। इसके बाद कुछ चैनल में ऑडिशन दिए और होस्टिंग की। जब मैंने भेजाफ्राई तो इत्तेफाकन वह चर्चित मुवी हो गई और उसके बाद हर कोई मेरे साथ काम करने को तैयार हो गया।फॉरेन रिटर्न कजिन के मिलते थे रोल
पाठक ने बताया कि एक समय ऐसा भी आया जिसमें मुझे फॉरेन रिटर्न कजिन यानी हीरो या हिरोइन के भाई का रोल मिलता था। मैं इससे उबरना चाहता था। वक्त बदला और मुझे हीरो या हिरोइन को मार्गदर्शन करने वाले रोल मिलने लगे। कोसला का घोसला एक ऐसी फिल्म थी जिसे 3 साल तक किसी ने नहीं खरीदा था। किसी को कोई उम्मीद नहीं थी कि मूवी चल पाएगी या नहीं लेकिन मेरे कॅरियर में उसका मुकाम न्यू जनरेशन की ‘पड़ोसन’ मूवी की तरह हुआ।
लगेज रह गया, अंडरवियर यहीं से खरीदी
पाठक ने बताया कि एयरपोर्ट से उतरकर मैं तो यहां तक पहुंच गया लेकिन मेरा लगेज बैग वहीं रह गया। चूंकि फ्लाइट लेट थी, जल्दबाजी में मैंने जो लोग मुझे लेने आए उनसे ही बैग लाने का निवेदन किया लेकिन किसी वजह से बैग आया नहीं और मुझे फ्रेेश होने के बाद अंडरवियर यहीं से खरीद कर बदलनी पड़ी।
अक्षय-मोदी पर नहीं करूंगा बिना देखे कोई कमेंट