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स्टेशन में चाय बेची, ऑफिस में झाड़ू लगाया, अब हैं छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के ‘पोस्टर मैन’

locationरायपुरPublished: Jul 04, 2021 11:45:37 pm

Submitted by:

Tabir Hussain

विष्णु मंडल 22 सालों में 250 से ज्यादा फिल्मों के बना चुके हैं पोस्टर

स्टेशन में चाय बेची, ऑफिस में झाड़ू लगाया, अब हैं छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के  'पोस्टर मैन'

स्टेशन में चाय बेची, ऑफिस में झाड़ू लगाया, अब हैं छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री के ‘पोस्टर मैन’

रायपुर/ ताबीर हुसैन. ये हैं विष्णु मंडल। छत्तीसगढ़ी फ़िल्म इंडस्ट्री में जाना-पहचाना नाम। उनका दफ्तर किसी फिल्मिस्तान से कम नहीं। 22 सालों में 250 फिल्मों के पोस्टर बना चुके हैं। पोस्टर किसी भी फ़िल्म का फर्स्ट लुक माना जाता है। पोस्टर में फ़िल्म के सभी पात्रों को उनके किरदार के मुताबिक ऐसे सजाया जाता है कि वह देखने वालों के लिए काफी अपीलिंग होता है। वे इस फील्ड में आने से पहले स्टेशन में चाय बेचा करते थे।। शायद ही कोई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म होगी जिसका पोस्टर विष्णु ने नहीं बनाया होगा। वे बताते हैं, आर्थिक तंगी के चलते कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई। होटल में चाय बेचते-बेचते ख्याल आया कि लाइन बदलनी चाहिए। एक ऑफिस में झाड़ू-पोछा का काम मिल गया। जहां मैं यह काम करता था वहां डिजाइनिंग का वर्क हुआ करता था। मेरे मालिक संजय भैया की संगत में रहते हुए मैं भी सीखने लगा। कुछ समय बाद मैंने नौकरी छोड़ दी और खुद का काम करने लगा।

डायरेक्टर की तरह काम है पोस्टर बनाना

मैं समझता हूँ पोस्टर बनाने में डायरेक्टर का नजरिया होता है। क्योंकि वह फ़िल्म के कई सीन को काटकर-जोड़कर फ़िल्म बनाता है। हमको बहुत से फ़ोटो को जोड़कर पोस्टर तैयार करना होता है। इसके लिए डायरेक्टर की तरह विजन होना चाहिए तभी पोस्टर में जान आती है।

रघुवीर से हुई शुरुआत

प्रेम चन्द्राकर की रघुवीर पहली फ़िल्म है जिसका पोस्टर मैंने बनाया। प्रेम भैया के साथ एल्बम में काम कर चुका था। जब उन्होंने फिल्म के लिए कहा तो मैंने यही जवाब दिया कि ट्राई करूँगा। पोस्टर जब बना तो उन्हें काफी पसन्द आया।

काम से प्यार करता हूँ, इसलिए दबाव पसंद नहीं

मैं अपने काम से बेइंतहा प्यार करता हूँ। यही वजह है कि वह रिफ्लेक्ट होकर काम में नजर आता है। इसलिए मैं अपनी शर्तों पर काम करना पसंद करता हूँ। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे काम को बिगाड़ दे। इसलिए मैं किसी को रॉ फाइल नहीं देता। इसलिए मैं प्रिंट तक की जिम्मेदारी लेता हूँ। ताकि बेहतर नतीजा दे सकूं।
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