रायपुर

कई बीमारियों के इलाज में कारगर है नदी-तालाब में फैली जलकुंभी, आयुर्वेद में भी मिलता है जिक्र

आयुर्वेद में अस्थमा, दर्द और त्वचा की बीमारियों में इस्तेमाल होता है जलकुंभी।

रायपुरAug 06, 2022 / 12:50 pm

Vinayak Singh

रायपुर। देशभर की नदियों, नालों व तालाबों में पानी के आतंक के रूप में फैली जलकुंभी ने लाखों नाले व तालाबों को बर्बाद कर दिया है। बस्तर का ऐतिहासिक दलपत सागर भी सालों से इसकी चपेट में है। इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च हो चुके हैं लेकिन नतीजा सिफर रहा है। जलकुंभी पर देश-विदेश में हुई कई रिसर्च यह कहती है कि इस आफत को आमदनी के जरिए में अगर तब्दील कर दिया जाए तो जल स्त्रोत की तस्वीर तो बदल सकती है।

जानकारों का कहना है कि जलकुंभी में औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेद में अस्थमा, दर्द और त्वचा से जुड़ी बीमारियों के इलाज में इसका इस्तेमाल होता है। इसके अलावा इससे फर्नीचर और हैंड बैग जैसे उत्पाद का निर्माण किया जा सकता है। दलपत सागर से हर दिन कई क्विंटल जलकुंभी निकलती है लेकिन इसका कोई उपयोग नहीं होता है। अगर इसके प्रोसेसिंग के लिए एक यूनिट डाल दी जाए और इसका काम बेरोजगारों को या स्व. सहायता समूह की महिलाओं को दे दिया जाए तो तालाब की सफाई के साथ ही रोजगार का एक बड़ा साधन तैयार हो जाएगा।

देश-विदेश में जब भी इसे लेकर कोई प्रोजेक्ट तैयार किया गया वो इसके खात्मे से संबंधित प्रोजेक्ट ही था लेकिन अब कई जगहों पर इसके उपयोग से जुड़ी नीति सरकारें तैयार कर रही हैं। देश का शायद ही कोई गांव या शहर का ऐसा हिस्सा बचा होगा जहां पर ठहरा पानी हो और उसमे जलकुम्भी का राज ना हो। सरकार चाहे तो एक पंथ से दो काज कर सकती है। इस पर कंट्रोल को लेकर बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षित करके फिजिकल तौर पर इसे खत्म किया जा सकता है और दवाइयों का निर्माण करके या आयुर्वेद की दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को इसे सप्लाई करके युवा मोटी कमाई कर सकते हैं। इसके और भी उपयोग हैं जैसे फर्नीचर, हैंडबैग, आर्गेनिक खाद,जानवरों के चारे के साथ कागज बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

तेल 1800 ₹ लीटर व पाउडर 900 ₹ किलो
देश की पुरातन चिकित्सा पद्दति आयुर्वेद में जलकुंभी का खासा महत्व है। आस्थमा, कफ, एंजाइमा, थाइराइड, शरीर के अंदरूनी दर्द, त्वचा संबंधी बीमारियों सहित तमाम अन्य प्रकार के उपयोग के लिए इससे तैयार होने वाला तेल 1800 रुपए लीटर तक बिकता है। इतना ही नहीं इसे सुखा कर पाउडर भी बनाया जाता है जो 900 रुपये किलो से लेकर 1200 रुपये किलो तक में बिकता है। पानी में 1 मीटर ऊंचाई तक जाने वाली बेलाकार जलकुंभी की 10 से 20 सेंटीमीटर चौड़ी पत्तियां विटामिन ए, बी और सी से भरी होती हैं।

अंग्रेज जलकुंभी को सजावटी पौधे के रूप में लेकर आए थे
जलकुंभी को लेकर जो जानकारी सामने आती है उसके अनुसार इसे भारत में सबसे पहले अंग्रेज लेकर आए थे। उन्होंने बंगाल में इसे सजावटी पौधे के रूप में लगाया। इसके बाद इसका दायरा पूरे देश के नदी-नालों और तालाबों में फैल गया। जलकुंभी से भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, अफ्रीका जैसे कई विकसित देश भी छुटकारा पाने में लगे हुए हैं लेकिन किसी को भी अभी पूरी तरह से सफलता नहीं मिली है।

वीड हार्वेस्टर से हर दिन निकाल रहे जलकुंभी
दलपत सागर को जलकुंभी मुक्त बनाए रखने के लिए अब भी प्रयास जारी हैं। तालाब के आईलैंड वाले हिस्से में हर दिन जेसीबी और वीड हार्वेस्टर मशीन के माध्यम से जलकुंभी को साफ किया जा रहा है। इस काम में महीने में लाखों का डीजल जल जल रहा है। जलकुंभी को तालाब से बाहर निकालने के बाद उसका कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है। जबकि प्रारंभिक स्तर पर कम से कम उससे खाद तो बनाई ही जा सकती है।

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