सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि प्रदेश में 21 मई तक 50.82 लाख लोगों को वैक्सीन लगी है। इसमें 45 प्लस और 18 प्लस दोनों आयु वर्ग शामिल है। जबकि आबादी 2.90 करोड़ हैं। तीसरी लहर संभावित है, लेकिन वैक्सीन नहीं है और वैक्सीनेशन लगभग बंद है। स्थिति को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन (Chhattisgarh Government) को भी अन्य प्रदेशों की तरह ग्लोबल टेंडर के माध्यम से वैक्सीन खरीदी करना चाहिए।
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सुनवाई के दौरान अधिवक्ता हिमांशु सिन्हा ने कहा कि केंद्र सरकार के निर्देश से जनवरी में वैक्सीनेशन (Vaccination in Chhattisgarh) शुरू कर दिया गया था, पर प्रदेश में जिस तरह वैक्सीनेशन हो रहा है, अगर यही हाल रहा तो इसके पूरा होने में डेढ़ से दो साल लग जाएंगे। जबकि कोरोना की तीसरी लहर सितंबर-अक्टूबर में आने की आशंका जताई जा रही है। यह भी कहा गया है कि बच्चों पर इसका प्रभाव पड़ेगा।बच्चों के लिए क्या कर रही सरकार
सुनवाई के दौरान टीकाकरण की धीमी गति की जानकारी देते बताया गया कि अभी 18 साल से ऊपर वालों को ही वैक्सीनेशन की सुविधा पूरी तरह नहीं मिल पाई है। टीकाकरण की गति बहुत धीमी है। लोगों को 3-3 महीने बाद बुलाया जा रहा है। ऐसे में उससे कम उम्र वालों का क्या होगा? प्रेग्नेंट महिलाओं को भी वैक्सीनेशन से दूर रखा गया है। राज्य सरकार बच्चों को कोरोना के प्रभाव से बचाने के लिए क्या कर रही है, इसके बारे में भी जानकारी दे।
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अन्य राज्यों की तरह ग्लोबल टेंडर की मांग
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति में वैक्सीन की पूर्ति करने के लिए देश में केवल दो कंपनियां काम कर रही हैं। इसकी वजह से कई राज्यों को वैक्सीन की कमी की वजह से टीकाकरण अभियान रोकना पड़ा है। उत्तर प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक जैसे राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ को भी ग्लोबल टेंडर जारी करना चाहिए।
टीका प्रमाणपत्रों की त्रुटि और अंतिम संस्कार व्यवस्था पर भी कोर्ट के निर्देश
न्यायालय का ध्यान टीकाकरण के संबंध में दोषपूर्ण प्रमाण पत्र जारी करने से उत्पन्न समस्या की ओर आकर्षित किया गया। कोविशिल्ड लगवाने वाले वाले व्यक्ति को कोवैक्सिन का प्रमाण पत्र जारी किया गया है। 18 प्लस के लोगों को सेकण्ड डोज के लिए भटकने और टीकों की बर्बादी पर भी चर्चा हुई। कोर्ट ने टीके लगाने व प्रमाणपत्र जारी करने में राज्य सरकार को सभी आवश्यक सावधानी बरतने के निर्देश दिए कि लोगों को पहली व दूसरी डोज अलग अलग टीके की न लगे और प्रमाणपत्र भी अलग-अलग जारी न हों।
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कोर्ट ने कहा कि चूंकि राज्य सरकार ने पहले ही आश्वासन दिया है कि जहां तक संभव हो, टीकों की बर्बादी नहीं होगी, इस संबंध में आगे किसी दिशा-निर्देश की आवश्यकता नहीं है। देवर्षि ठाकुर, अधिवक्ता द्वारा दायर एक हस्तक्षेप आवेदन का उल्लेख करते कोर्ट ने कहा कि कोविड 19 (COVID-19) के मरीजों के शवों का दफन या दाह संस्कार सभ्य और सम्मानजनक तरीके से किया जाए। क्योंकि सम्मानपूर्वक और शालीनता से दफनाने या दाह संस्कार करने का अधिकार हमेशा अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में शामिल माना गया है।