तीन सालों में गेहूं का उत्पादन बड़ा, लेकिन ‘न्यायÓ नहीं छत्तीसगढ़ में पिछले तीन सालों गेहूं का रकबा एक लाख से बढ़कर हुआ सवा दो लाख हेक्टेयर हो गया है। इस साल पौने तीन लाख हेक्टेयर गेहूं की खेती हुई थी। सिर्फ चार जिलों राजनांदगांव, कबीरधाम, बेमेतरा, दुर्ग क्षेत्र में देखें तो, गेहूं की खेती का रकबा तीन सालों में तीन गुना बढ़ गया है। इन सब के बावजूद गेहूं उत्पादक किसानों को राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ नहीं मिलता है। अधिकारियों का कहना है कि गेहूं रबी की फसल है और राज्य सरकार खरीफ की फसलों में राजीव गांधी किसान न्याय योजना का लाभ दे रही है। इससे रबी की फसल लेने वाले किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बता दें कि राजीव गांधी किसान न्याय योजन के तहत खरीफ की लगभग सभी फसलों में इनपुट सब्सिडी दी जा रही है। वहीं धान के बदले अन्य फसल देने पर यह सब्सिडी बड़ जाती है। इसी सब्सिडी की वजह से प्रदेश में धान की कीमत 2500 प्रति क्विंटल से अधिक हो जाती है।
इस बार किसानों को मिली अच्छी कीमत छत्तीसगढ़ में मध्य प्रदेश की तर्ज पर गेहूं की सरकारी खरीदी नहीं होती है। यहां गेहूं की पैदावार अपेक्षाकृत कम है, लेकिन इस बार जिन किसानों ने अपने खेत में गेहूं बोया था, उन्हें उसकी अच्छी कीमत मिली है। किसान नेता राजकुमार गुप्त कहते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से यह अनुमान पहले ही लग गया था कि दुनियाभर में इसे लेकर संकट हो सकता है। इसका फायदा उठाते हुए एक्सपोर्टरों ने इस बार सीधे किसानों से संपर्क किया और न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत देकर गेहूं खरीदी है। वर्तमान में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2015 रुपए प्रति क्विंटल हैं, लेकिन किसानों को 2100 से 2200 रुपए प्रति क्विंटल मिला है।
वर्जन गेहूं की कीमतें हर साल नहीं बढ़ती है। इस बार 500 रुपए प्रति क्विंटल तक बढ़ी है। युद्ध और खराब मौसम इसका बड़ा कारण है। यदि अभी गेहूं का निर्यात होते रहता तो इसकी कीमत और बढ़ जाती।
पूरनलाल अग्रवाल, अनाज कारोबारी और चेम्बर के पूर्व संरक्षक