कॉलेज पढऩे के लिए नहीं थे पैसे मिडिल तक मेरी पढ़ाई गांव में हुई। नौवीं से बारहवीं तक हरिहर स्कूल नवापारा में पढ़ा। कॉलेज की पढ़ाई के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। एक शख्स जो बीमा एजेंट हैं एच अली मीर। उन्हें लगा कि मैं पढ़ाई में होशियार हूं। उन्होंने अपने घर बुलाया। पास-पड़ोस के बच्चों को मुझे ट्यूशन पढ़ाने कहा। ट्यूशन से मिले पैसे और जैन संगठन की मदद से मैं आगे की पढ़ाई के लिए नवापारा के निजी कॉलेज में दाखिला ले लिया। कॉलेज प्रबंधन ने भी मेरी फीस आधी कर दी थी। मैं वहां यूनिवर्सिटी सेकंड टॉपर रहा। एमएससी के लिए मीर साहब ने मुझे अपने बेटियों के घर रायपुर भेजा। मैंने दो साल उनके संतोषी नगर स्थित घर में रहकर रविवि से पढ़ाई की।
तत्कालीन कुलपति ने ट्रेनिंग के लिए मुंबई भेजा रविवि के तत्कालीन कुलपति एसके पांडे को लगा कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूं। उन्होंने एक विशेष ट्रेनिंग करने दो महीने के लिए मुंबई भेजा। ट्रेनिंग के बाद मैं लौट आया। कुछ दिनों बाद वहां से एक मैसेज आया कि बैंगलुरु में टेलीस्कोप चलाने की वैकेंसी है। अप्लाई करने के लिए दो-तीन दिन ही शेष थे। उस वक्त मोबाइल का जमाना तो था नहीं। लैंडलाइन था। दुर्ग वालों ने राजिम फोन घुमाया। राजिम से दो आदमी बाइक से मेरे गांव पहुंचे। उन्होंने मुझे सारी बातें विस्तार से बताई। मैं साइकिल से नवापारा आया। वहां से बस पकड़कर रायपुर पहुंचा। पहुंचते ही फॉर्म भरा और पोस्ट किया। कुछ दिनों बाद वहां से इंटरव्यू कॉल आया। इंटरव्यू के बाद मुझे ज्वाइनिंग लेटर मिला और मैं डेढ़ साल टेलीस्कोप चलाने का काम किया।
इसरो में भी किया रिसर्च इसके बाद डेढ़-दो साल इसरो में रहा। इसरो में मेरी पोस्ट पर्मानेंट साइंटिफिक पोस्ट की नहीं थी, मैं वहां रिसर्च कर रहा था। हालंाकि अगर वहां चार से पांच साल तक रहता तो वैज्ञानिक भी बन जाता। उसी बीच मैंने नेट क्लियर कर लिया था। उन दिनों यूनिवर्सिटी में नेट क्लियर करने वालों को ही विवि में रखा जाता था। पूरे छत्तीसगढ़ में मैं तीसरा था जो नेट क्वालिफाई था। मैंने रविवि में अप्लाई किया तो बैंगलुरु और इसरो के एक्सपीरियंस के चलते मेरा सलेक्शन हो गया। अभी मैं यहां सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर हूं। जल्द ही एसोसिएट और 2025 तक प्रोफेसर बन जाऊंगा।
माता-पिता किसान थे मेरे पैरेंट्स किसान थे। हम चार भाई हैं। बड़ा भाई खेती-किसानी देख रहा है। दूसरे नंबर का भाई आरंग में शिक्षक है। तीसरा मैं और सबसे छोटा वाला आरंग में सचिव है। मैं अपने गांव का पहला लड़का था जिसने एमएससी की। पहला युवा था जिसे सरकारी नौकरी मिली। अंचल में ऐसी उपलब्धि वाला मैं ही था। मैंने कभी कोचिंग नहीं ली। खुद की पढ़ाई से आगे बढ़ा। हरिहर स्कूल का मैं 1999 पासआउट स्टूडेंट हूं। एचआर साहू सर के बेटे का रेकॉर्ड था कि वह हर क्लास में टॉप कर रहा था। मैंने बारहवीं तक आते-आते उसका रेकॉर्ड तोड़ दिया। जब ग्रेजुएशन के लिए फूलचंद कॉलेज गया तो वहां डॉली रावका टॉपर थी। वह गल्र्स स्कूल से कॉलेज तक टॉप किए जा रही थी। मैंने उसका भी रेकॉर्ड भी तोड़ दिया। रविवि से संबंद्धित जितने भी कॉलेज थे, मेरी सेकंड पोजिशन रही। जब रविवि आया तो 15 साल का रेकॉर्ड टूटा। मैं एमएससी टॉपर रहा।
घर वाले बोलते थे शिक्षाकर्मी बन जाओ ग्रेजुएशन के बाद घर वाले कहते थे कि शिक्षाकर्मी बन जाओ। मैंने पोंड़ में अप्लाई भी कर दिया था। वहां का सरपंच मेरे पिता का दोस्त था। उसने पिता को आश्वासन दिया था कि तुम्हारे लड़के चयन पक्का हो जाएगा। लेकिन पता नहीं क्या गणितबाजी हुई कि इंटरव्यू से मेरा नाम ही काट दिया गया। इसके बाद घर वालों ने फूृलचंद कॉलेज मैनेजमेंट से मेरे लिए बात कर ली थी कि मैं वहां पढ़ाने लगूं। इसी बीच बालको में मेरा इंटरव्यू हुआ। लेकिन मैं गया नहीं। इस दौरान लैब टेक्नीशियन के लिए मैंने फॉर्म भरा। वहां भी किसी वजह से नहीं हो पाया।
मेरी कहानी सुनकर बोले मैंने कहीं सुनी थी फूलचंद कॉलेज में मेरे केमेस्ट्री टीचर थे। उन्होंने मेरी संघर्ष की कहानी अपने ससुर को बताई थी। उनके ससुर तिल्दा में कॉमर्स के टीचर हैं। एक बार मैं निपनिया गया था। वहां मैंने स्कूली बच्चों संग अपनी सफलता की कहानी साझा की। वहां मौजूद एक टीचर ने मुझसे कहा कि मैंने यह कहानी कहीं सुनी है। तुम प्रसन्ना को जानते हो क्या? मैंने कहा हां, वे तो मेरे टीचर थे फूलचंद में। तब वे कहने लगे कि वे तो मेरे दामाद हैं। यानी जो कहानी मेरे टीचर ने अपने ससुर को सुनाई थी, वही कहानी मैंने उन्हें सुनाई। तो यह भी एक संयोग ही था।
विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वालों को मिलती है फेलोशिप जो लोग विज्ञान के क्षेत्र में अच्छा काम करहे हैं, खासतौर पर रिसर्च के क्षेत्र में। भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ऐसे लोगों को फेलोशिप प्रदान करती है ताकि आप उनके सेंटर्स पर जाकर शोध करें। ये स्टूडेंट और टीचर दोनों के लिए होता है। गर्मी की छुट्टियों में दो महीने निर्धारित होते हैं जिसमें आप देश के संबंधित केंद्रों में जाकर रिसर्च कर सकते हैं। अक्टूबर-नवंबर में आवेदन आते हैं जिसे ऑनलाइन अप्लाई करना होता है। फॉर्म की स्क्रुटनी होती है। उसके बाद ऑफर मिलता है। जम्मू के लद्दाख में 4500 मीटर की ऊंचाई में टेलीस्कोप है जिसकी ऑपरेटिंग बैंगलुरु से रिमोट से की जाती है।