गरुण पुराण में कुछ ऐसे स्थानों का वर्णन किया है जहां भोजन करने का अर्थ है अपने चरित्र और मस्तिष्क को दूषित करना।
रायपुर. हमारे शास्त्रों मे कहा गया है कि जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन, ये महज ये लोकोक्ति नहीं है इसका साइंटीफिक रीजन भी हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। क्योंकि हमारे खान-पान से हमारे आचार-व्यवहार पर खासा प्रभाव देखने को मिलता है। जो लोगो ज्यादा गरिष्ठ या मांसाहार भोजन करते हैं, उनमें क्रोम, काम की प्रवृत्ति अधिक दिखती है। अपराधों में भी ऐसे ही लोगों का ज्यादा हाथ होता है। इसलिए सात्विक भोजन के साथ ही। भोजन कहां और किसके घर करना चाहिए इन सब बातों का हमारे शास्त्रों में विधान का उल्लेख किया है।
आजकल की जेनरेशन भले ही इस बात पर विश्वास ना करे लेकिन गरुण पुराण में कुछ ऐसे स्थानों का वर्णन किया है जहां भोजन करने का अर्थ है अपने चरित्र और मस्तिष्क को दूषित करना। ऐसे लोगों का भी उल्लेख है जिनके हाथ का बना खाना पूरी तरह दूषित तो होता ही है लेकिन साथ ही जो व्यक्ति उस भोजन को ग्रहण करता है उसका मन-मस्तिष्क भी संक्रमण की ओर बढ़ जाता है।
आखिर क्यों मना है किन्नरों के घर भोजन?
हमारी संस्कृति और धर्म-ग्रंथों में किन्नरों को दान करना शुभ बताया गया है। दरअसल किन्नरों को अच्छा-बुरा, हर व्यक्ति दान करता है इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि जिस भोजन को ग्रहण किया जा रहा है वह अच्छे व्यक्ति का है या बुरे, इसलिए किन्नरों के घर भोजन करना निषेध है।
चरित्रहीन स्त्री के घर का भोजन
चरित्रहीन स्त्री से तात्पर्य ऐसी स्त्री है जो अपनी इच्छा से अनैतिक कृत्यों में लिप्त है। गरुण पुराण के अनुसार जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के हाथ से बना भोजन करता है तो वह उसके द्वारा किए जा रहे पापों को अपने सिर ले लेता है।
सूद लेने वाला व्यक्ति
आज के समय में यूं तो ब्याज पर पैसा देना और लेना बहुत सामान्य हो गया है लेकिन गरुण पुराण के अनुसार ब्याज पर पैसे देना और सूद समेत वापस लेना निर्धन लोगों की मजबूरी का फायदा उठाना है। जो व्यक्ति ऐसा करता है वह तो अत्याचारी होता ही है साथ ही उस व्यक्ति के घर भोजन करने वाला व्यक्ति भी उसके पाप का भागीदार हो जाता है।
चुगलखोर स्वभाव वाला व्यक्ति
चुगली करने वाले लोग दूसरों की परेशानी का कारण बनते हैं और आत्मसंतुष्टि के लिए दूसरों को फंसा देते हैं। ये भी किसी पाप से कम नहीं है। ऐसे लोगों के घर भोजन कर उनके पाप का भागीदार नहीं बनना चाहिए।
अकसर लोग फ्रिज में पड़े बासी खाने या फिर खराब हो चुके अन्न को दूषित कहकर उसका त्याग कर देते हैं, लेकिन हमारे शास्त्रों में दूषित अन्न की परिभाषा अन्य शब्दों में ही दी गई है, जो शायद बहुत हद तक ज्यादा सटीक बैठती है।