पत्नी ने बताया कि उसने मुक्तांजलि से फोन के जरिए संपर्क किया, लेकिन किसी कारण से मुक्तांजलि नहीं मिल पाई। पत्नी ने बताया कि उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि किसी अन्य एंबुलेंस के जरिए शव को ले जा सके। मजबूरन ठेले में शव को घर ले जाना पड़ रहा है। वहीं इस घटना के सामने आने के बाद भी प्रशासन की ओर से महिला को किसी भी प्रकार की मदद नहीं दी गई।
बतादें कि इस तरह की यह पहली घटना नहीं है, इससे पहली भी देश के अलग-अलग इलाकों से मानवता को शर्मसार कर देने वाली एेसी घटनाएं सामने आती रही हैं। गौरतलब है कि मानवता को शर्मसार कर देने वाला सबसे पहला मामला अगस्त 2016 में ओडिशा के कालाहांडी जिले में सामने आया था, जहां एक आदिवासी को अपनी पत्नी के शव को अपने कंधे पर लेकर करीब 10 किलोमीटर तक चलना पड़ा था। उसे अस्पताल से शव को घर तक ले जाने के लिए कोई वाहन नहीं मिल सका था।
उस मजबूर शख्स के साथ उसकी 12 साल की बेटी भी थी। मामला तब सामने आया जब स्थानीय लोगों ने दाना माझी को अपनी पत्नी अमंग देई के शव को कंधे पर लादकर ले जाते हुए देखा। दाना मांझी की पत्नी टीबी से मौत हो गई थी।
इस घटना के बाद मानो देश के अलग-अलग इलाकों से एेसी घटनाओं की बाढ़ सी आ गई। मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़ समेत अलग-अलग इलाकों से आई एेसी घटनाओंं ने राज्य सरकारों की उन दांवों की पोल खोल दी, जिसमें वे जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का दावा करते हैं।