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क्या प्रणव झा छालीवुड को दे पाएंगे बूस्टअप डोज?

locationरायपुरPublished: Dec 02, 2021 05:21:33 pm

Submitted by:

Tabir Hussain

कल रिलीज हो रही है डॉर्लिंग प्यार झुकता नहीं

क्या प्रणव झा छालीवुड को दे पाएंगे बूस्टअप डोज?

डॉर्लिंग प्यार झुकता नहीं… का एक सीन।

ताबीर हुसैन @ रायपुर . प्रणव झा निदेर्शित, मन कुरैशी और अनिकृति चौहान अभिनीत छत्तीसगढ़ी फीचर फिल्म डॉर्लिंग प्यार झुकता नहीं कल सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। कोरोना की मार झेल रही छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्रीज को भी बूस्टअप डोज की जरूरत है। ऐसे में प्रणव कितना सफल हो पाते हैं बस कुछ घंटों में ही पता चल जाएगा। बताते चलें कि झा ने बीए फस्र्ट ईयर, बीए सेकण्ड ईयर बनाई और अगला प्रोजेक्ट बीए फाइनल ईयर का है। लेकिन दिलचस्प बात यह कि उन्होंने फस्र्ट ईयर में दाखिला तो लिया लेकिन पढ़ाई छोड़ वे हीरो बनने का सपना लिए माया नगरी निकल गए। सरवाइव करने के लिए सेल्समैन बने। एसटीडी पीसीओ में काम किया। ट्रेन में मैग्जीन बेची। जब कुछ समझ नहीं आया तो लौट गए लेकिन सिनेमा की दीवानगी कम नहीं हुई। रायपुर के संतोष जैन जय बम्बलेश्वरी मैया बना रहे थे तो प्रणव ने स्पॉट ब्वॉय के तौर पर एंट्री ली और उनके काम को देखकर जैन ने अपना असिस्टेंट बना लिया। अब तक वे कुछ एल्बम्स समेत तीन फिल्में डायरेक्ट कर चुके हैं।

कलाकर चाहिए के इश्तिहार से बदला मन

प्रणव कहते हैं, फिल्मों के प्रति इतना जुनून था कि अगर कोई कहता पत्थर उठाना है तो भी मैं तैयार हो जाता। पिता फॉरेस्ट में थे मां टीचर। लेकिन उनने मुझे रोका नहीं। साल 1998 में जी टीवी के एक विज्ञापन पर नजर पड़ी। कलाकार चाहिए। खैरागढ़ में मैंने ऑडिशन दिया और सलेक्ट भी हो गया लेकिन किसी वजह से वह प्रोजेक्ट डब्बे में चला गया। उसके बाद मैं किस्मत आजमाने मुम्बई गया। हर यंगस्टर्स की तरह मेरा भी स्ट्रगल रहा। लिंक नहीं बना तो मैं लौट आया। यहां साप्ताहिक बाजारों में कपड़े बेचा करता था। उसी समय मोर छइन्हा भुइँहा लगी थी। पोस्टर देख सोचा कि मुम्बई में तो कुछ कर नहीं पाया लेकिन यहां जरूर कुछ करना है। प्रेम चन्द्राकर के अंडर में मैंने रील एजेंट भी बना। लेकिन जब जैन ने मुझे अपना असिस्टेंट बनाया तो ध्यान लेखन की ओर बढऩे लगा और मैंने उसी पर फोकस करना शुरू कर दिया।

लेखन, निर्देशन और सम्पादन

मेरी फिल्मों में मैं डायरेक्टर के साथ लेखक और सम्पादक भी खुद होता हूँ। संवाद भी मेरे होते हैं हालांकि डार्लिंग … के लिए लगभग 20 फीसदी डायलॉग शारदा अमित ने लिखे हैं।

ऐतिहासिक फिल्मों के सब्जेक्ट हैं पर बजट नहीं

एक सवाल पर कहा कि छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक फिल्मों के लिए बहुत से सब्जेक्ट हैं लेकिन बजट नहीं। करोड़ों खर्च कर आप 25 टॉकीजों से उतनी रिकवरी नहीं कर पाएंगे। अगर आप फि़ल्म में भव्यता नहीं ला सकते तो उस सब्जेक्ट को न छूना ही बेहतर होगा।
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