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सुपरफास्ट ट्रेन में महिला को प्रसव पीड़ा, दिया पुत्र को जन्म

locationरायपुरPublished: Oct 23, 2019 11:53:50 pm

Submitted by:

dharmendra ghidode

छत्तीसगढ़ से जीवन यापन करने दिल्ली गए सूर्यवंशी परिवार के लिए सोमवार की रात कभी भी नहीं भूलने वाली रात रही।

सुपरफास्ट ट्रेन में महिला को प्रसव पीड़ा, दिया पुत्र को जन्म

ट्रेन में नवजात के साथ परिजन।

बलौदाबाजार. सूर्यवंशी परिवार के छत्रपाल सूर्यवंशी की पत्नी मधु सूर्यवंशी गर्भावस्था में ही परिवारजनों के साथ दिल्ली से ग्राम सरखो, नैला (जिला जांजगीर चांपा) लौट रही थी। गोंडवाना एक्सप्रेस में रात में ही मधु को प्रसव पीड़ा उठी। जिसके बाद चलती सुपरफास्ट एक्सप्रेस में रात लगभग पौने बारह बजे उसने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया।
ट्रेन के अन्य यात्रियों के लिए यह कौतूहल भरा रहा तथा सहयात्रियों ने प्रसव के दौरान मधु को भरपूर सहयोग दिया। प्रसव के बाद नागपुर में रेलवे की चिकित्सक ने जच्चा-बच्चा की जांच की। प्रसूता मधु की कमजोरी को देखते हुए नागपुर के बाद गोंदिया स्टेशन में सूर्यवंशी परिवार ने मधु तथा परिवार के कुछ लोगों को उतारकर शासकीय चिकित्सालय भर्ती कराया।


प्रसव के दौरान सहयात्री भी जागते रहे
मधु के प्रसव के दौरान अधिकांश यात्री जगते रहे तथा सूर्यवंशी परिवार की मदद की। जैसे ही यात्रियों को पुत्र जन्म की जानकारी मिली सभी लोग उत्साह में नाचने-गाने लगे। इस दौरान कुछ लोगों ने मजाक में नवजात पुत्र का नाम ट्रेन के नाम पर गोंडवाना सूर्यवंशी तथा घर का नाम बोगी के नाम पर एस.11 भी रखने की सलाह दे डाली।

ठेकेदार की वजह से परिवार परेशान
मधु के पति छत्रपाल सूर्यवंशी ने बताया कि उनका परिवार तथा ग्राम के अन्य कुछ लोग जीवन यापन करने गाजियाबाद गए थे। जहां वे सभी गाजियाबाद स्थित इंद्रापुरम बिल्डिंग में कार्य करते हैं। मधु के आठवां माह लगने के साथ ही वे ठेकेदार से पूरा वेतन दिए जाने की फरियाद कर रहे थे, ताकि समय पर मधु को प्रसव के लिए गांव ले आते। परंतु ठेकेदार द्वारा पूरे परिवार को माह भर परेशान किया गया तथा पैसा देने में टालमटोल किया जाता रहा। ठेकेदार ने शनिवार को सूर्यवंशी परिवार को पूरा पैसा दिया था। जिसके बाद वे तत्काल सोमवार की गाड़ी से गांव लौट रहे थे। छत्रपाल ने बताया कि ठेकेदार की वजह से उनकी पत्नी तथा परिवार को परेशानी झेलनी पड़ी। यदि ठेकेदार बीते माह ही उनका वेतन आदि पूरे पैसे दे देता तो वे सभी सितंबर माह में ही गांव लौट सकते थे।

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