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सर्वे में कानूनी दांव-पेंच आड़े आ गए हैं। केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार ही दर्जनों ऐसी शर्तें रख दी गई हैं, जिससे हजारों बच्चे इस दायरे से बाहर हो गए हैं। इसलिए उनको शासन से किसी तरह की मदद नहीं मिल पा रही है। इसी वर्ष जनवरी माह में कराए गए सर्वे में यह आंकड़े सामने आए हैं। बार-बार लॉकडाउन लगने के कारण इनके पुनर्वास का काम भी पूरा नहीं हो पाया है। बाल श्रमिक, अवशिष्ट संग्राहक एवं भिक्षावृत्ति में संलिप्त बच्चों के सर्वेक्षण एवं बचाव के लिए अभियान हाल ही में चलाया गया था।कुल 36 अधिकारियों ने किया सर्वे
सर्वेक्षण के लिए रायपुर निगम के सभी 10 जोन के 10 कमिश्नर, नगर पालिक निगम बीरगांव के 3 जोन के जोन कमिश्नर 3 एवं 1 परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास, 416 ग्राम पंचायत के सर्वेक्षण के लिए 4 जनपद पंचायत सीईओ तथा 4 सहायक परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास को लगाया गया था। इसी तरह तीन नगर पालिका गोबरा नवापारा, तिल्दा-नेवरा एवं आरंग तथा चार नगर पंचायत खरोरा, माना कैम्प, अभनपुर, कुर्रा के 7 सीएमओ, महिला एवं बाल विकास के 7 सहायक नोडल अधिकारी कुल 36 अधिकारी को तैनात किया गया था। इस तरह 36 अधिकारी सिर्फ 11 बच्चों को ही ढ़ूंढ पाए।
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बाल श्रमिक स्कूल बंद
आईटीई आने के बाद से प्रदेश के सभी बाल श्रमिक स्कूलों को बंद कर दिया गया। पिछले साल तक जिले के करीब सौ बाल श्रमिक स्कूलों में पांच हजार से अधिक बच्चे पढ़ते थे। आईटीई के तहत उनका स्कूलों में दाखिला तो करा दिया गया, लेकिन उनमें से कितने स्कूल पहुंच रहे हैं इसका सर्वे बाद में नहीं हुआ है।
फैक्ट फाइल
– भिक्षावृत्ति वाले बालकों की संख्या- 76
– कचरा बिनने वाले- 102
– बाल श्रमिक- 11
कुल – 189