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मलेरिया के अलावा भी मच्छरों से हो सकती है कई जानलेवा बीमारियां, रहें सावधान

locationरायपुरPublished: Apr 25, 2019 04:27:09 pm

Submitted by:

Akanksha Agrawal

मच्छर के काटने से होने वाला मलेरिया आज भी चुनौतीपूर्ण जानलेवा बीमारी बना हुआ है किंतु हमें मच्छरों से होने वाली अन्य बीमारियों को भी कम गम्भीर आंकने की ज़रूरत नहीं है।

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मलेरिया के अलावा भी मच्छरों से हो सकती है कई जानलेवा बीमारियां, रहें सावधान

रायपुर. मच्छर के काटने से होने वाला मलेरिया आज भी चुनौतीपूर्ण जानलेवा बीमारी बना हुआ है किंतु हमें मच्छरों से होने वाली अन्य बीमारियों को भी कम गम्भीर आंकने की ज़रूरत नहीं है। एनाफि़लीज़ मच्छर के काटने से होने वाले मलेरिया का मुख्य कारण पांच तरह के प्लाज़्मोडियम हैं जिनके कारण फ़ाल्सीपारम, वायवेक्स, ओवेल, मलेरी या नोलेसी प्रकार का मलेरिया हो सकता है। एडिज़ मच्छर की प्रजातियों से चिकनगुनिया, डेंगू और ज़ीका वायरस नामक बीमरियां, जबकि क्यूलेक्स मच्छर के काटने से सेंट लुइस इन्सिफ़ेलाइटिस वायरस, वेस्ट नील वायरस, फ़ाइलेरियासिस और एवियन मलेरिया होता है । हाथीपांव बीमारी मच्छर के अलावा एक काली मक्खी के भी काटने से फैलता है ।
वेस्ट नील वायरस आजकल कॉमन होता जा रहा है किंतु अधिकांश लोग जो इससे संक्रमित होते हैं, उनमें कोई लक्षण ही नहीं होते। मात्र बीस प्रतिशत लोगों में फ़्लू जैसे लक्षण होते हैं और एक प्रतिशत लोगों में ही गम्भीर लक्षण प्रकट हो पाते हैं जिससे उनका तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है। पीला बुख़ार मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड में सूजन के कारण होता है। सेंट लुइस इन्सिफ़ेलीटाइड्स क्यूलेक्स के काटने से होता है और लक्षणों में ज़ीका जैसा होता है।
चिकनगुनिया में जोड़ों का दर्द, सिरदर्द, लाल दाने या चकत्ते और बुख़ार होता है । तंजानिया की किमाकोण्डे भाषा में चिकनगुनिया का अर्थ है झुका हुआ। इसमें रोगी जोड़ों के दर्द के कारण सीधा नहीं हो पाता। ठीक हो जाने के बाद भी जोड़ों का दर्द लम्बे समय तक बना रह सकता है। चिकनगुनिया से आंख, हृदय और किडनी गम्भीर रूप से प्रभावित हो सकती है। यदि चिकनगुनिया के कारण इसिफ़ेलाइटिस हो जाय तो मृत्यु की सम्भावना बढ़ जाती है ।
मच्छर काटने से होने वाले जीका वायरस में भी बुख़ार के साथ-साथ जोड़ों का दर्द होता है, इसके अतिरिक्त मांसपेशियों में दर्द, आंखों में लालिमा, सिरदर्द और आंखों के पीछे दर्द की शिकायत हो सकती है । यह प्राय: गम्भीर नहीं होता और लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाता है लेकिन इससे गर्भ को गम्भीर नुकसान हो सकता है (गर्भ विकृति, माइक्रोसिफ़ेली, गुइलेन बार सिण्ड्रोम, मृत्यु)। यह सेक्स से भी फैल सकता है इसलिए यदि एडीज़ मच्छर वाले एरिया में हैं तो कण्डोम का इस्तेमाल सुरक्षा दे सकता है । यह प्राय: दोबारा नहीं होता । एडीज़ के साथ एक ख़ास यह भी है कि यह दिन में ज़्यादा सक्रिय होते हैं मतलब यह कि मच्छरदानी की यहां कोई भूमिका नहीं ।
डेंगू को हड्डीतोड़ बुख़ार भी कहते हैं इसे फैलाने वाला मच्छर एडीज इजिप्टी है जो मूलत: अफ्रीका का है और 15वीं शताब्दी में ग़ुलामों के साथ एशिया और अन्य महाद्वीपों में भी फैल गया। ये दिन में कभी भी काट सकते हैं लेकिन ख़ासतौर पर सुबह-शाम इनका प्रकोप अधिक देखा जाता है । एडीज मच्छर से डेंगू के अतिरिक्त चिकनगुनिया, पीला बुख़ार, ज़ीका और मयारो भी होता है ।
एडीज की एक अन्य प्रजाति है एडीज़ एल्बोपिक्टस जिसे एशियन टाइगर भी कहते हैं इसके काटने से डेंगू के अलावा वेस्ट नील या ला-क्रॉस भी हो सकता है । डेंगू के मामले में ख़ास बात यह है कि यदि यह दोबारा हुआ तो पहले से अधिक गम्भीर होता है । सामान्यत: यह मलेरिया और टायफ़ायड जैसा लगता है किंतु इसका एक हीमोरेजिक़ टाइप भी होता है जिसमें मुँह या नाक से ख़ून आ सकता है । बीपी बहुत कम या बहुत अधिक हो सकता है, पेट दर्द या उलटी हो सकती है। कोई स्पेसिफिक़ इलाज़ नहीं है । ब्लड प्लेटीलेट्स कम होने पर पपीते के पत्तों का प्रयोग लाभकारी है । भुइनीम और गिलोय का काढ़ा लाभकारी है । किंतु किसी भी स्थिति में एस्पिरिन और ब्रूफ़ेन नहीं देना चाहिये ।

मच्छरों से कैसे बचा जाय ?
रात को सोते समय काटने वाले मच्छरों से बचने के लिए तो मच्छरदानी सबसे अच्छा उपाय है लेकिन जो मच्छर दिन में या सुबह-शाम काटते हैं उनसे बचने के लिए तेज ख़ुश्बू वाले साबुन और पफ्यऱ्ूम से भी बचना चाहिये क्योंकि इनसे ये वाले मच्छर आकर्षित होते हैं । वहीं संतरा या नारियल का तेल लगाने से मच्छरों को काटने से रोका जा सकता है ।

मच्छरों से होने वाली बीमारियों के लिए सामान्य देशी इलाज…
भुइ नीम, गिलोय, सागर गोटा, पलाश का बीज और पपीते का पत्ता ये वो जड़ी-बूटियां हैं जो हर जगह आसानी से उपलब्ध है। भुइनीम और गिलोय का काढ़ा बनाकर दिन भर में तीन बार दिया जाता है। सागर गोटा और पलाश के बीजों का चूर्ण मरीज़ की उम्र के अनुसार 1 से 3 ग्राम तक दिन भर में तीन बार दिया जाता है।

पपीते के पत्तों का रस 10 से 30 मिलीलीटर तक दिन भर में दो बार दिया जाना चाहिये । इसके अतिरिक्त तुलसी के पत्ते, काली मिर्च, लौंग और दालचीनी का काढ़ा हर प्रकार के बुख़ार में दिया जा सकता है । यह बहुत अच्छा एण्टी वायरल है। आयुष 64 मलेरिया की अच्छी दवा है जो मेडिकल स्टोर में भी आसानी से उपलब्ध ह, यह कैप्सूल, टैबलेट और सीरप के रूप में उपलब्ध मलेरिया की कारगर दवाई है।
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