मंदिर की अध्यक्ष डोमेश्वरी साहू ने बताया कि पूजा अर्चना के करने से इस लोक में यश वैभव प्राप्त करने के साथ ही मृत्यु उपरांत जीवन मरण के चक्कर से मोक्ष की प्राप्ति होती है जो पुराणों में भी वर्णित है । कलयुग में सबसे पहले पार्थिव पूजन कुष्ठ्मांड ऋषि के पुत्र मंडप ऋषि ने किया किया था ।
स्वयं भगवान के आदेश पर जगत के कल्याण के लिए उन्होंने पार्थिव शिवलिंग बनाकर शिव अर्चना किया। पार्थिव पूजा से सभी वस्तुओं को तुरंत प्रदान करती है और तत्क्षण दुखों का नाश करती है। पार्थिव पूजा से तत्क्षण कलह पुत्रादि धन धान्य को प्रदान करती है । और इस लोक में सभी मनोरथ को भी पूर्ण करती है तथा अकाल में होने वाली अपमृत्यु को भी रोक देती है ।
इस पूजा को स्त्री पुरुष सभी कर सकते है। पूजन की विधियों की जानकारी देते हुए उन्होंने ये भी बताया की मिट्टी और गऊ गोबर से बनाएं पार्थिव शिवलिंग के पूजन करने से पहले पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी, गऊ का गोबर, गुड़, मक्खन और भस्म मिलाकर शिवलिंग बनाया जाता है ।
शिवलिंग के निर्माण में इस बात का ध्यान रखा जाता है की यह 12 अंगुल से ऊंचा नहीं हो। इससे अधिक ऊंचा होने पर पार्थिव शिवलिंग पूजन का पुण्य प्राप्त नहीं होता है। इसे बनाने के बाद ऊँ नम:शिवाय के मंत्र से शिवार्चना करनी चाहिए। भक्तों को मनोकामना पूर्ति के लिए शिवलिंग पर तीन सेर प्रसाद चढ़ाना चाहिए। साथ ही इस बात का ध्यान रहे कि जो प्रसाद शिवलिंग से स्पर्श कर जाए, उसे ग्रहण नहीं करें। इसके लिए शिवलिंग स्पर्श से दूर प्रसाद को ग्रहण करें।
पार्थिव शिवलिंग की पूजा अर्चना के दौरान मंदिर के पुजारी और क्षेत्रवासियों की भरी भीड़ लगी रही पूजा के दौरान सभी ने शहर वासियों की खुशहाली और तरक्की की कामना की।