आदिवासी बाहुल क्षेत्र में कुपोषण को दूर करने में हो सकती है सहायक
छत्तीसगढ़ जिंक धान-1 आदिवासी बाहुल क्षेत्र में कुपोषण को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह देश की पहली जिंक जैव फोर्टिफाईड चांवल की किस्म है। छत्तीसगढ़ जिंक धान-1 के चांवल का दाना लंबा व मोटा होता है। इस किस्म में 24 पी.पी.एम. जिंक की मात्रा होती है। इसकी फसल 110-115 दिनों पक कर तैयार हो जाती है और इसका उपज 40-45 क्विंटल/हेक्टेयर आता है। वर्तमान फसल में 25-30 कंसे लगे हैं जिससे अच्छी उपज की संभावना बनी है। इसके चांवल के सेवन से व्यक्ति के शरीर में जिंक की आवश्यकता पूरी होती है। यह पोहा बनाने के लिये काफी उत्तम है।
मनुष्य के शरीर में जिंक की कमी से शारीरिक वजन में गिरावट, बालों का झडना, डायरिया होना, आंख की रोशनी में कमी आना, सिकलिंग होना आदि लक्षण दिखाई पड़ता है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद के अनुसार 1-3 वर्ष के बच्चों को 3.3 मि.ग्रा./दिन, 13-15 वर्ष के किशोरों को 14.3 मि.ग्रा./दिन, 13-15 वर्ष के किशोरियों को 12.8 मि.ग्रा./दिन, 16-18 वर्ष के लड़को को 17.6 मि.ग्रा./दिन, 16-18 वर्ष के लड़कियों को 14.2 मि.ग्रा./दिन, पुरूषों को 17 मि.ग्रा./दिन, गर्भवतियों को 14.5 मि.ग्रा./दिन, शिशुवतियों को 14 मि.ग्रा./दिन जिंक की आवश्यकता होती है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। जिंक की अत्यधिक कमी होने पर मनुष्य को गंभीर बीमारी जैसे केंसर, कीड़नी, लीवर संबंधी बीमारी होती है। गर्भवती महिलाओं को जिंक की कमी होने की संभावना बनी रहती है। अत: जिंक युक्त आहार जिंक की कमी को दूर करने का उचित माध्यम है।
इन गांवों के किसान कर रहे है इसकी खेती
खरीफ वर्ष 2021 में जिले में 150 एकड़ में जिंको धान की खेती कि गई थी। खरीफ वर्ष 2022 में बायोफोर्टिफाईड धान की किस्म छत्तीसगढ़ जिंक-1 का 50 एकड़ में तथा जिंको धान 125 एकड़ में लगाया गया है।
धान कि ये फसल ग्राम पुरनतराई, बिंजाम, समलूर, सियानार, झोडियाबाडम, रोजें, हीरानार, मटेनार, मासोडी, मुस्तलनार, कारली, कासोली व ग्राम हारम में लगाया गया है। डॉ. अभिनव साव, पौध प्रजनन व अनुवांशिकी विभाग, इंगांकृवि रायपुर को परियोजना के सफल संचालन के लिए नोडल अधिकारी बनाया गया है। जिला दन्तेवाडा में कृषि विज्ञान केन्द्र गीदम दन्तेवाड़ा के वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रमुख डॉ नारायण साहू के नेतृत्व में डिप्रोशन बंजारा, वि व वि सस्य विज्ञान तथा पूनम कश्यप, वाई पी -2, पौध रोग विज्ञान के द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।