केवल बारिश के दिनों में ही बेतवा और उसकी सहायक नदियां पानी से भरपूर होती हैं। तब ये नदियां बेतवा के साथ मिलकर बाढ़ के रूप में विकराल होकर अपनी ताकत का अहसास कराती हैं। यह संदेश भी देती हैं कि इस बहते पानी को रोक लो, थाम लो, लेकिन जिम्मेदारों ने यह भी नहीं समझा।
न तो बेतवा पर कोई उपयोगी स्टॉप डेम बनाया और न ही सहायक नदियों में भरने वाले बारिश के पानी को रोकने के कोई इंतजाम किए। नतीजा हमारे सामने है। बेतवा के साथ सहायक नदियों में एक बूंद पानी नहीं है।
किसी योजना में शामिल नहीं
सरकार हर साल जल स्रोतों के उद्धार की योजना बनाती है, लेकिन बड़ी नदियों, नलों को किसी योजना में शामिल नहीं किया जाता है। तालाबों के नाम पर हर साल करोड़ों की योजनाएं बनती हैं, लेकिन नदियों के लिए कोई योजना नहीं है। जिला स्तर पर भी न तो जनप्रतिनिधि न अधिकारी नदियों के उद्धार की चिंता करते हैं।
इन नदियों को भी किया बर्बाद
सबकुछ जानते हुए भी शासन और प्रशासन की अनदेखी ने बेतवा की सहायक नदियों के साथ, नर्मदा की सहायक नदियों सहित अन्य नदियों को भी दम तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है। सिलवानी की बेगम नदी, बेगमगंज की बीना नदी, सुल्तानपुर की पलकमती नदी, बरेली की तेंदोनी नदी भी इनमें शामिल हैं।
अजलान और घिंसु नदी भी बर्बाद
बेतवा की सहायक नदियों में प्रमुख अजनाल और घिंसु नदी हैं। जो औबेदुल्लागंज क्षेत्र के जंगल से निकली हैं। इन नदियों में आज एक बूंद पानी नहीं है। इसका प्रमुख कारण इन नदियों की कभी सफाई और गहरीकरण की योजना नहीं बनी। कभी इन नदियों से एक तगाड़ी मिट्टी बाहर नहीं निकाली गई, बल्कि जितना हो सका कचरा और गंदगी इन नदियों में डाली है। लगभग 50 किमी लंबी अजनाल नदी शुरू से अंत तक बर्बाद है।
हालात ये हैं कि नदी में किसानों के लिए दाहोद डेम से पानी भरा गया था वो भी सूख चुका है। जानवरों के लिए भी पानी नहीं बचा है। गड्ढों में भरा पानी भी दूषित होकर सूख गया है। यही हाल घिंसु नदी का है। बेतवा में मिलने वाला कोड़ी नाला बारिश के तुरंत बाद सूख जाता है। जबकि बारिश में यही नाला रायसेन से सांची रोड पर कई बार आवागमन बंद करता था। इसीलिए इस नाले पर ऊंचा पुल बनाया गया है।