मोबाइल टॉवर से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होना साबित हो चुका है। नागरिकों की मांग पर अविलंब टॉवर लगाने काम रोकन को आदेश जारी किया जाए। ज्ञापन सौपने वालों में निशीष पालीवाल, प्रणवीर सिंह चौधरी, खेमचंद पटेल, पीयुष पालीवाल, रामदयाल धाकड़ आदि शामिल रहे।
कैंसर होने का खतरा
वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने मोबाइल टॉवर से निकलने वाले इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन को 2 (बी ) कैटैगरी में रखा है। इस कैटैगरी में वो चीजें आती हैं,जो कैंसर होने का कारण बनती है। फि नलैंड के वैज्ञानिक दारिउश लंसिस्की ने 2014 में बताया था कि टॉवर के आसपास के इलाके में लगातार 10 साल तक औसतन 30 मिनट रहने से ब्रेन कैंसर का रिस्क बढ जाता है।
क्या है नियम
मोबाइल टॉवर लगाने वाली कंपनी को टॉवर लगाने के लिए डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकाम की गाइडलाइन का पालन करना अनिवार्य है। 2014 में डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम ने गाइड लाइन जारी की थी कि कोई टॉवर के पहले एंटीना की ऊंचाई की बराबरी पर कोई घर नहीं होना चाहिए। अगर एक टॉवर में एक ही दिशा में 6 एंटीना लगाए गए हैं तो उसके सामने 55 मीटर के दायरे में कोई भी इमारत नहीं होनी चाहिए। इस गाइड लाइन को न मानने पर एक टॉवर पर पांच लाख का जुर्माना का प्रावधान है।
उच्चतम न्यायालय का निर्णय
उच्चतम न्यायालय द्वारा ग्वालियर के हरीशचंद की याचिका पर मार्च 2017 में रहवासी क्षेत्र में लगे मोबाइल टॉवर हटाने को निर्णय दिया जा चुका है। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में माना था कि रहवासी क्षेत्र में मोबाइल टॉवर से कैंसर होता है। न्यायालय ने प्रति टॉवर 10 लाख के जुर्माना के साथ तत्काल प्रभाव से टॉवर हटाने को निर्णय दिया था।
इनका कहना
संबंधित भवन मालिक, टेलीकॉम कंपनी और नगर परिषद सीएमओ को नोटिस जारी कर तलब किया गया है।
संजय उपाध्याय, एसडीएम बरेली।