scriptनर्मदा तटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ | Huge crowd of devotees on Narmada shores | Patrika News

नर्मदा तटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

locationरायसेनPublished: Feb 05, 2019 12:25:47 pm

सोमवार को माघ मास की अमावस्या यानी मौनी अमावस्या के साथ ही इस दिन सोमवती अमावस्या का भी दुर्लभ संयोग बना है

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UdaPura On Monday, on the day of Magh Month’s Amavasya i.e. Mauni Amavasya, this day is also a rare coincidence of Somavati Amavasya. In order to achieve virtue in this yoga created five decades later, a large number of pilgrims from the districts of Vidisha, Narsinghpur, Sehore, including Raisen, reached the Narmada shores and performed bathing worship.

रायसेन/ उदयपुरा. सोमवार को माघ मास की अमावस्या यानी मौनी अमावस्या के साथ ही इस दिन सोमवती अमावस्या का भी दुर्लभ संयोग बना है। पांच दशक बाद बने इस योग में पुण्य को हासिल करने के लिए रायसेन सहित विदिशा, नरसिंहपुर, सीहोर आदि जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु नर्मदा तटों पर पहुंचे और स्नान कर पूजन अर्चना की। नक्षत्रों की अद्भुत जुगलबंदी से बने योग में नर्मदा में मौनी अमावश्या के स्नान का सबसे बड़ा महत्व होता है।
इस बार अमावस्या तीन फरवरी की रात 11:12 बजे लगी थी, जो कि 4 फरवरी को देर रात 1:30 बजे तक चली। सोमवार का दिन और त्रिग्रहीय योग में स्नान दान के कारण श्रद्धालुओं ने पुण्य लाभ अर्जित किया।
महापुण्य के लिए दिन भर चला पूजा-पाठ
कुछ परिवार बोरास में दो दिन पहले से पहुंच चुके थे और महापुण्य हासिल करने के लिए दिन भर सत्यनारायण कथा सुंदरकांड भजन कीर्तन, पूजा-पाठ करवाया। दूर से आए भक्तों के भंडारे चल रहे थे। नर्मदा के बोरास तट सहित केतोघान, शोकलपुर, सिंहनाथ, अलीगंज, बगलवाड़ा, पतई सहित अन्य तटों पर सर्दी की परवाह किए बगैर श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई।
माता पिता की सेवा से बड़ा दूसरा पुण्य नहीं
सिलवानी. बीकलपुर में चल रही शिव महापुराण कथा के छठवें दिन पंडित राम कृपालु उपाध्याय ने कहा कि हमारे जीवन में माता-पिता का स्थान सर्वोच्च है। उन्होंने कहा कि सभी देवी देवताओं का निवास माता-पिता में है। इसलिए उनकी सेवा और उनका सम्मान करना हमारा परम धर्म है। व्यक्ति के जीवन में माता-पिता का योगदान सबसे अधिक रहता है। जो व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में रहता है, उसका पहला कर्तव्य कि उसके माता-पिता प्रसन्न रहें, उनका सम्मान हो।
संपूर्ण मर्यादा से व्यक्ति माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उनको परिवार में सर्वोच्चता देते हुए अपना जीवन यापन करें।
यदि घर में माता-पिता दुखी हैं और पुत्र के द्वारा तीर्थ, जप, तप, दान, यज्ञ आदि कर्म किए जा रहे हैं तो इन पुण्य कर्मों का फल निष्फल ही रहता है। माता-पिता की सेवा, उनकी आज्ञा का पालन करना, उनके सानिध्य में रहना, उनका संरक्षण प्राप्त करना पुत्र का सबसे बड़ा धर्म है।
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