उदयपुरा में कौरव का संकट
उदयपुरा विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी नेतराम कौरव कांग्रेस के रामकिशन पटेल और भाजपा के देवेंद्र पटेल के लिए सिरदर्द साबित होंगे। इससे पहले कौरव तीन चुनाव निर्दलीय जीत चुके हैं। एक बार जनपद सदस्य का एक बार मंडी सदस्य का और एक बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीता है। उनके अलावा लगभग २५ हजार जातिगत वोटों के सहारे खड़े हुए निर्दलीय देवेंद्र कुमार नोरिया भी बड़े वोट काटू साबित हो सकते हैं। तीसरे निर्दलीय प्रत्याशी कांग्रेस के बागी लोकनारायण रघुवंशी हैं। उनकी पत्नी वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य हैं। ये भी चुनाव के गणित को प्रभावित करेंगे।
भोजपुर विधानसभा से भाजपा के दो बागी प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लडऩे का दम भर रहे हैं। हालांकि पार्टी के सूत्र इनकी नाम वापसी की पूरी उम्मीद जता रहे हैं। भाजपा से टिकट मांग रहे मंडीदीप नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष विपिन भार्गव और बाड़ी के जोधासिंह अटवाल ने टिकट नहीं मिलने पर नामांकन जमा कर अपनी पार्टी को ही चुनौती दे दी है। यहां भाजपा को ही अधिक नुकसान होने की संभावना है। लिहाजा पार्टी इन बागियों को मनाने और नाम वापस लेने के लिए तैयार करने की जुगत में है। भार्गव का प्रभाव मंडीदीप क्षेत्र में है, जो भाजपा के लिए बड़े नुकसान का कारण बन सकते हैं। उनके बने रहने से कांग्रेस के लिए ब्राह्मण वोटों का गणित गड़बड़ाएगा।
मोहरा साबित हो सकते हैं मेहरा
यदि सांची विधानसभा की बात की जाए तो यहां से भाजपा के मुदित शेजवार और कांग्रेस के प्रभुराम चौधरी के बीच में निर्दलीय प्रत्याशी मनोहर मेहरा बड़े मोहरा साबित होंगे। मेहरा रायसेन के आसपास के लगभग एक दर्जन गांवों में सेंध लगाते दिखाई दे रहे हैं। मेहरा भाजपा से टिकट मांग रहे थे, लिहाजा वे भाजपा के बागी कहलाए, नुकसान भी भाजपा को ज्यादा करेंगे, लेकिन कांग्रेस को इससे बहुत लाभ होगा यह भी जरूरी नहीं है, क्योंकि एससी सीट पर वोटों की कटिंग इसी वर्ग से अधिक होगी। इनके अलावा किसान नेता निर्दलीय प्रत्याशी राजेंद्र बाबू राय भी किसानों के वोटों की दम पर जोर लगा रहे हैं।
सिलवानी विधानसभा में भाजपा के रामपाल सिंह और कांग्रेस के देवेंद्र पटेल के बीच कांग्रेस के बागी नीलमणि शाह वोटों में सेंध लगाएंगे, जो कांग्रेस और भाजपा के लिए कांटा साबित होंगे। यदि शाह मैदान में डटे रहे तो संकट तय है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गोंड राजा परिवार के लोकविजय शाह कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे, टिकट नहीं मिला तो बेटे नीलमणि को निर्दलीय प्रत्याशी उतार दिया है। २०१३ के चुनाव में शाह के प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा आगे रही थी, इस बार उनके खुद मैदान में होने पर यहां भाजपा को नुकसान होगा। लगभग ३० हजार वोटों पर शाह कांग्रेसी होने के कारण कांग्रेस के वोटों में भी सेंध लगाएंगे।