गांव में तीन माह से नहीं थी बिजली, महिलाओं ने कलेक्ट्रेट के सामने लगाया जाम
रायसेन. जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर स्थित ग्राम परसौरा में बीते तीन माह से बिजली नहीं है। इसका कारण गांव में कम क्षमता वाली छोटी डीपी रखी गई है। जिससे वह बार-बार खराब होती है। फिर उसे बदलने में बिजली कंपनी महीनो लगा देती है। तीन माह से परेशान गांव के लोगों ने पहले कलेक्टे्रट पहुंचकर आवेदन दिए थे, लेकिन आश्वासन के अलावा कोई कार्रवाई नहीं हुई। मंगलवार को गांव की लगभग 20 महिलाएं लोडिंग मेजिक वाहन किराए पर लेकर कलेक्ट्रेट पहुंची और बिना देर किए कलेक्ट्रेट गेट के सामने हाईवे पर जाम लगा दिया। महिलाएं पूरी सड़क को घेरकर बैठ गई और नारेबाजी करने लगीं।
इसकी जानकारी कलेक्टर तक पहुंची और फिर एसडीएम, तहसीलदार, एसडीओपी, टीआई सहित पुलिस बल मौके पर पहुंच गया। अधिकारियों ने महिलाओं की समस्या सुनी और हमेशा की तरह आश्वासन देकर उन्हे घर भेजने का प्रयास किया, लेकिन महिलाएं तय कर आई थीं, कि बड़ा ट्रांसफार्मर लेकर ही जाएंगी। एसडीएम एलके खरे, तहसीलदार अजय प्रताप पटेल और एसडीओपी अदिति भावसार ने उन्हे समझाने के बहुत प्रयास किए, लेकिन जब तक एसडीएम ने बिजली कंपनी के अधिकारियों को बड़ा ट्रांसफार्मर तुरंत परसौरा भेजने के आदेश नहीं दिए तब तक महिलाएं सड़क पर डटी रहीं। लगभग 30 मिनट तक हाइेव पर आवागमन बंद रहा। महिलाएं सड़क से तो हट गईं, लेकिन किनारे पर बैठकर ट्रांसफार्मर आने का इंतजार करती रहीं। इस दौरान एसडीएम, बिजली कंपनी के अधिकारी से बात करते रहे। जब बिजली घर से परसौरा के लिए ट्रांसफार्मर रवाना होने का पक्का भरोसा महिलाओं को हुआ तब वे अपने लोडिंग वाहन से गांव के लिए वापस लौटीं।
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यह मात्र प्रदर्शन नहीं, संकेत है
प्रवीण श्रीवास्तव. अब ग्रामीण यह मानने लगे हैं कि आवेदन देने से समस्या हल नहीं होगी, अधिकारी पूरा आश्वासन देकर घर भेज देंगे और समस्या जस की तस बनी रहेगी। ऐसे ही अनुभवों के बाद अब गांव की महिलाएं भी जिला मुख्यालय पहुंचकर अपने गांव की समस्या हल करवाने के लिए प्रदर्शन और चक्का जाम जैसे कदम उठाने लगी हैं। मंगलवार को जनसुनवाई में आवेदन देना और फिर समस्या हल होने का लंबा इंतजार…। यही परंपरा बन गई है। जिम्मेदार अधिकारी अधिकतर कार्यों को आश्वासनों के सहारे टाल देते हैं। बल्कि प्रशासनिक हलके में वहीं अधिकारी होशियार और क्षमतावान माना जाने लगा है, जो लोगों की नाराजगी और उग्रता आश्वासन देकर शांत करना जानता हो। परसौरा की महिलाएं गांव से आकर कलेक्ट्रेट के सामने चक्काजाम कर अपनी मांग पूरी करा सकती हैं, तो यह उनकी सफलता तो है, लेकिन प्रशासनिक अमले के लिए अच्छा संकेत नहीं है। गांव की समस्याएं तत्काल प्रभाव से गांव में ही हल हो जाएं तो जिला मुख्यालय प्रदर्शन और धरना के साथ चक्काजाम का केंद्र न बने। पठारी कांड भी ऐसी ही नाकामी का परिणाम था।
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