मंदिर की परिक्रमा कर की जाएगी रथ यात्रा की औपचारिकता
बेगमगंज. भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथयात्रा का इंतजार कर रहे श्रद्धालुओं को इस साल भी निराश होना पड़ेगा। आज निकलने वाली रथ यात्रा में मात्र औपचारिकता की जाएगी। कोरोना गाइड लाइन के चलते प्रशासन द्वारा रथ यात्रा के लिए अनुमति नहीं दी गई है। इसलिए आज सुबह पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने के बाद नगर के माला फाटक स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में यात्रा की रस्म पूरी की जाएगी। यहां भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाओं को मंदिर से बाहर लाकर परिक्रमा कराई जाएगी, इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाएगा। आषाढ़ शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाने वाली रथ यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं में जगब का उत्साह रहता है।
पंडित कमलेश शास्त्री ने बताया कि पौराणिक कथाओ के अनुसार रथ यात्रा चार किवदंतियां हैं। पहली यह कि श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके लौटती हैं तो अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से नगर भ्रमण की इच्छा जताती हैं। तब कृष्ण, बलराम और सुभद्रा के साथ रथ से नगर घूमने जाते हैं। तभी से रथ यात्रा का प्रारंभ माना गया है। दूसरी यह कि गुंडीचा मंदिर स्थित देवी, श्रीकृष्ण की मौसी हैं। वो तीनों भाई-बहन को अपने घर आने का निमंत्रण देती है। तब वे मौसी के घर रथ पर सवार होकर जाते हैं। तीसरी कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के मामा कंस उन्हें मथुरा बुलाते हैं, जब श्रीकृष्ण अपने भाई बहन के साथ रथ से मथुरा जाते हैं, तब से रथ यात्रा की शुरुआत हुई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इस दिन कृष्ण ने कंस का वध किया था और बड़े भाई बलराम के साथ प्रजा को दर्शन देने के लिए मथुरा में रथ यात्रा निकाली थी। चौथी कथा के मुताबिक कृष्ण की रानियाां माता रोहिणी से रासलीला सुनाने को कहती हैं। माता को लगता है कि कृष्ण की गोपियों के साथ रासलीला के बारे सुभद्रा को नहीं सुनना चाहिए। इसलिए वो उसे कृष्ण, बलराम के साथ रथ यात्रा पर भेज देती हैं। तभी वहां नारदजी आते हैं और तीनों को साथ देखकर खुश हो जाते हैं। प्रार्थना करते है कि तीनों के दर्शन ऐसे हर हर साल हों, तब रथ यात्रा में तीनों के दर्शन होते हैं।
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