हे बुद्ध, सारे विश्व को शांति और सद्भाव के मार्ग पर चलने की शक्ति दें
रायसेनPublished: Nov 26, 2022 08:36:13 pm
साधु-साधु से गूंजी भगवान बुद्ध की नगरी। अस्थिकलश पूजन से शुरू हुआ महाबोधि महोत्सव।
हे बुद्ध, सारे विश्व को शांति और सद्भाव के मार्ग पर चलने की शक्ति दें
रायसेन. भगवान बुद्ध की नगरी सांची में शनिवार सुबह साढ़े सात बजे भगवान बुद्ध और उनके परम शिष्य सारिपुत्र तथा महामुग्लायन के अस्थिकलशों की पूजन के साथ 70वें दो दिवसीय महाबोधि उत्सव का शुभारंभ हुआ। श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के स्वामी तथा बौद्ध भिक्षुओं ने अस्थिकलशों का पूजन कर दर्शनों के लिए मंदिर में रखा। इसके बाद विभिन्न देशों से आए बौद्ध भिक्षुओं, बुद्ध धर्म के अनुयायियों ने अस्थिकलशों के दर्शन कर विश्व में शांति और सद्भाव की प्रार्थना की। सुबह से शाम तक हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन किए। इस दौरान जापान, श्रीलंका, सिंगापुर सहित अन्य देशों के पर्यटकों ने भी दर्शन, पूजन की। शाम साढ़े छह बजे से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिसमें जापान के लोक कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं।
सुबह लगभग साढ़े सात बजे मंदिर के तलघर से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच भगवान बुद्ध के परम शिष्यों की पवित्र अस्थियों के कलशों को निकाला गया। इस अवसर पर जिला प्रशासन के अधिकारी भी उपस्थित रहे। तलघर से निकालने के महाबोधि सोसायटी के प्रमुख भंते वानगल विमलतिस्स नायक थैरो ने अपने शिष्यों के साथ अस्थियों की पूजा अर्चना की। शनिवार को प्रमुख लोगों में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अनुराधा शंकर सिंह पहुंचीं। हालांकि पहले दिन पर्यटकों की भीड़ कम थी, आज रविवार को अधिक पर्यटकों के पहुंचने का अनुमान है।
श्रद्धा और भक्ति से सराबोर रहे लोग
भगवान बुद्ध के अनुयायी स्तूप परिसर में जहां-तहां घूमकर भगवान बुद्ध की जीवन गाथा पर चिंतन करते नजर आए। परिसर में मौजूद गाइड और अधिकारियों से सांची के इतिहास तथा स्तूपों के बारे में जानकारी लेते देखे गए। विदेशी पर्यटक अपने कैमरों में स्तूप के द्वार पर उकेरी गई जातक कथाओं और भगवान बुद्ध के जीवन वृतांत के चित्रण को कैद कर रहे थे। डायरी में हर चित्र की कहानी विस्तार से लिखते रहे।
अद्भुत है यह जगह
– जापान से आई लोक कलाकार म्यू मिशियु ने कहा कि वे पहली बार सांची आई हैं और अब बार-बार आने के प्रयास करेंगी। यहां आकर लगा कि वाकई आज के दौर में बुद्ध का संदेश क्यों प्रासंगिक है। यहां शांति और आत्मसंतोष का अनोखा अनुभव हुआ है।
– श्रीलंका से आई दीमलासा कहती हैं कि भगवान बुद्ध का यह स्थान वाकई स्वर्ग है। यहां आकर लगा कि हम अब तक इससे दूर क्यों थे। यहां आकर वापस जाने का मन नहीं करता है। जाना पड़ेगा, लेकिन फिर यहां आएंगे और कुछ दिन रुक कर इस शांति को आत्मसात करेंगे।
– यूरोप से आकर आगरा में हिंदी और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रही बारबोरा ने कहा कि सांची के बारे में अब तक जो सुना था, यह उससे भी बढ़कर सुंदर और अदुभुत जगह है। यहां शांति है, प्रेम है और भगवान बुद्ध के संदेश हैं। हम फिर आएंगे और टीम लेकर आएंगे।