डिप्टी रेंजर सुशील पटेल का कहना है कि करीब 15 से 20 वर्ष पहले विलुप्त हो चुके गिद्ध गत एक बार क्षेत्र में फिर सक्रिय होने की क्या वजह है तब उन्होंने बताया कि कुछ कहीं-कहीं भील समुदाय के लोग गिद्ध के पंख से तीर बनाते हैं। इनके झुंडों पर हमला होने का भी एक कारण हो सकता है कि उन्हें अपना स्थान छोड़कर इस क्षेत्र के जंगलों को सुरक्षित मानकर अपना डेरा जमा लिया हो। ठंड के मौसम में अत्यधिक ठंड वाले क्षेत्र से पलायन करके सामान्य ठंडे क्षेत्रों को भी अपना ठिकाना बनाते हैं।
जानकारों का कहना है कि इस पक्षी को बंगाल का गिद्ध कहा जाता है। इस प्रकार के विलुप्त हो चुके गिद्ध का दूसरा नाम श्चमर गिद्ध भी है। 90 वर्षीय बाबू खान ने बताया कि काफी वर्षो पहले ये गिद्ध जसरथी, देहगुवां, मडिय़ा गुसांई, सुल्तानगंज, खजुरिया गुसांई आदि के जंगलों में देखे जाते थे। उसके बाद अब ये गिद्ध देखने को मिले हैं। उनका क्षेत्र के जंगलों में सक्रिय होना प्रकृति के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।