scriptशुभ संकेत : MPके जंगलों में दिखे प्रकृति के स्वच्छता के सिपाही दुर्लभ गिद्ध | rare vultures Seen in the forests of MadhyaPradesh | Patrika News

शुभ संकेत : MPके जंगलों में दिखे प्रकृति के स्वच्छता के सिपाही दुर्लभ गिद्ध

locationरायसेनPublished: Dec 05, 2020 08:49:04 pm

प्रकृति के स्वच्छता के सिपाही करीब 15 साल बाद विलुप्त हुए दुर्लभ प्रजाति के श्चमर गिद्ध सुल्तानगंंज के पास माडिया गुंसाई के जंगलों में दिखाई दिए हैं।

Increase in number of vultures,rare vultures Seen in the forests of MadhyaPradesh

Increase in number of vultures,rare vultures Seen in the forests of MadhyaPradesh

रायसेन. प्रकृति के स्वच्छता के सिपाही करीब 15 साल बाद विलुप्त हुए दुर्लभ प्रजाति (rare vultures) के श्चमर गिद्ध सुल्तानगंंज के पास माडिया गुंसाई के जंगलों में दिखाई दिए हैं। इसे कोरोनाकाल में प्राकृतिक संतुलन के ठीक होने के बाद लौटने को शुभ संकेत के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि ठंड के मौसम में संभवतया इन्होंने अपना स्थान बदला है। गिद्दों की संख्या करीब तीन दर्जन बताई जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में अचानक ये गिद्ध दिखाई देने की वजह लॉकडाउन के कारण प्रदूषण कम होना भी माना जा रहा है। डिप्टी रेंजर सुशील पटेल के मुताबिक ये गिद्ध दुर्लभ हैं, इनकी प्रजाति विलुप्त श्रेणी में शामिल है। 15 से 20 वर्ष पूर्व ये गिद्घ यहां पाए जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे खत्म होते चले गए। यहां इनका फि र से देखा जाना शुभ संकेत है।
गिद्ध के पंख का उपयोग तीर बनाने में होता
डिप्टी रेंजर सुशील पटेल का कहना है कि करीब 15 से 20 वर्ष पहले विलुप्त हो चुके गिद्ध गत एक बार क्षेत्र में फिर सक्रिय होने की क्या वजह है तब उन्होंने बताया कि कुछ कहीं-कहीं भील समुदाय के लोग गिद्ध के पंख से तीर बनाते हैं। इनके झुंडों पर हमला होने का भी एक कारण हो सकता है कि उन्हें अपना स्थान छोड़कर इस क्षेत्र के जंगलों को सुरक्षित मानकर अपना डेरा जमा लिया हो। ठंड के मौसम में अत्यधिक ठंड वाले क्षेत्र से पलायन करके सामान्य ठंडे क्षेत्रों को भी अपना ठिकाना बनाते हैं।
इन्हें दो नामों से पहचाना जाता
जानकारों का कहना है कि इस पक्षी को बंगाल का गिद्ध कहा जाता है। इस प्रकार के विलुप्त हो चुके गिद्ध का दूसरा नाम श्चमर गिद्ध भी है। 90 वर्षीय बाबू खान ने बताया कि काफी वर्षो पहले ये गिद्ध जसरथी, देहगुवां, मडिय़ा गुसांई, सुल्तानगंज, खजुरिया गुसांई आदि के जंगलों में देखे जाते थे। उसके बाद अब ये गिद्ध देखने को मिले हैं। उनका क्षेत्र के जंगलों में सक्रिय होना प्रकृति के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है।
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