रायसेन

भक्तजन माता के दर्शन और पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे

हरसिद्धी माता परवरिया मंदिर में वार्षिक मेला शुरूधर्मआस्था-परिवार सहित पहुंचने लगे श्रद्धालु, दाल बाटी चूरम के लड्डु का लगा रहे भोग, मेले में उमड़ रही भीड़।

रायसेनMay 22, 2019 / 12:18 pm

Rajesh Yadav

भक्तजन माता के दर्शन और पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे

रायसेन। जिला मुख्यालय से लगभग तेरह किलोमीटर दूर परवरिया गांव में है बरसों पुराना हरसिद्धी माता का मंदिर। यहां बुद्ध पूर्णिमा के दिन से वार्षिक मेला प्रारंभ होता है। इस वर्ष भी यह आयोजन प्रारंभ हो चुका है। इस अवसर पर भक्तजन माता के दर्शन और पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे। यह वार्षिक मेला पूरे एक महीने तक चलता रहेगा।
हरसिद्धी माता के दरबार में लगने वाले वार्षिक मेला में खाने पीने की चीजों से लेकर गृह उपयोगी सामग्री कपड़े, खेल-खिलौने आदि की दुकानें लगती हैं। मेले में ग्राहकों की भीड़ दुकानों पर खरीदी के लिए उमडऩे लगी है।
प्रसाद चढ़ाने आना ही पड़ता है…
रायसेन, विदिशा, भोपाल के व्यापारी यहां दुकान लगाकर सामान बेचने का कारोबार सालों से करते चले आ रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई भी परिवार का सदस्य हरसिद्धी माता का प्रसाद ग्रहण कर लेता है तो उसे हर साल देवी दर्शन करने और दरबार में प्रसाद चढ़ाने आना ही पड़ता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

मंदिर का है प्राचीन इतिहास…
यह हरसिद्धी माता मंदिर का प्राचीन इतिहास और महत्व जरा अलग है। माता के दरबार में लोगों की भारी जन आस्था है। माता रानी हरसिद्धी भक्तों की खाली झोली तो भरती ही है, साथ ही मनोकामनाएं पूरी भी करती हैं। कई बहुओं की सूनी खाली गोद बच्चा देकर भर दी।

धर्मसंघ मंदिर मठ पुजारी संघ के जिलाध्यक्ष पंडित महंत बालमुकंद दास त्यागी, पूर्व सरंपच जगन्नाथ सिंह यादव ने बताया कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का साम्रज्य मालवा क्षेत्र में फैला था। उनकी वीरता की यशकीर्ति भी चारों तरफ फैली थी। एक बार उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अपने कारवां के साथ बैलगाड़ी से हरसिद्धी माता की प्रतिमा लेकर जा रहे थे।
 

विदिशा से होकर जैसे ही उनके कारवां रायसेन जिले के परवरिया गांव पहुंचा तो एक विशाल टीले के नजदीक नीम के पेड़ के नीचे हरसिद्धी माता की प्रतिमाएं लेकर रूका। सुबह जब राजा विक्रमादित्स अपनी सेना के साथ उज्जैन के लिए रवाना होने लगे। बैलगाड़ी के पहियों की धुरी टूट गई। पहियों की धुरी बदलने के बाद बैलगाड़ी को गाड़ीवान हांकने लगा तो वह पलट गई।

माता हरसिद्धी की तीन पिंडी रूपी प्रतिमाएं चबूतरे पर रखा गईं। तभी राजा विक्रमादित्य ने हरसिद्धी माता की इन प्रतिमाओं को इसी चबूतरे पर विधि-विधान से विराजित करा दिया। इसके बाद राजा विक्रमादित्य उज्जैन रवाना हो गए।
हरसिद्धी माता का एक मंदिर तरावली और दूसरा मंदिर उज्जैन में है। बाद में परवरिया गांव व विदिशा के व्यापारियों और ग्रामीणों की मदद से एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। यहां मंदिर के बाहर माता रानी हरसिद्धी की सवारी सिंह पेहरा दे रहे हैं।
 

 

ग्रामीणों ने ली माता के दरबार में शरण
बताया जाता है कि एक बार जब बारिश में परवरिया गांव में विपदा की घड़ी आई। मूसलाधार बारिश होने से टापू पर बसा परवरिया गांव चारो तरफ बाढ़ से घिर गया और उनको जनमाल का काफी नुकसान हो गया। कई ग्रामीण सारी चिंता छोड़कर माता हरसिद्धी के दरबार में शरण लेने पहुंच गए, तब उनकी जान बच सकी।


ऐसी हैं हरसिद्धी माता जो अपने भक्तों की जानमाल की रक्षा भी करती हैं। अब इस हरसिद्धी माता मंदिर की समिति व ट्रट भी गठित करवा दिया गया है। जिसमें ऋषिनाथ सिंह कुशवाह, द्वारका प्रसाद राठौर, पूर्व सरंपच जगन्नाथ सिंह यादव सदस्य के रूप में शामिल हैं। मंदिर परिसर में धर्मशाला, नल-जल योजना चबूतरे सहित बगीचा भी है। यहां लोग परिवार सहित ठहरते हैं।

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