अनेक दुराचारियों ने जब अपने बाहुबल से, सज्जनों को कष्ट प्रदान किया था, तो परमात्म सत्ता गुण रूप में प्रकट हुई थी और उसने दुष्टों को नष्ट करके, धर्म की पुनस्र्थापना की थी। कथा का श्रवण करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। पंडित उपाध्याय ने श्रीकृण के अवतार की कथा को सुनाते हुए कहा कि राजा कंस का आतंक जब चारों ओर व्याप्त हो गया था, तो भगवान श्रीकृष्ण ने माता देवकी के यहां अवतार लिया। कंस ने उनकी सगी बहन देवकी और बहनोई वासुदेव जी को कारागार में बंद कर दिया था।
उनको कष्ट दिए जा रहे थे, तो परमात्म सत्ता उस कारागार में प्रकट हो जाते हैं। परमात्मा के दिव्य रूप को देखकर, कैद में पड़े देवकी और वासुदेव जी के समस्त बंधन अपने आप ही टूट जाते हैं। भगवान के दिव्य स्वरूप को देखकर, उनको अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है। भगवान से विभिन्न तरह से वह प्रार्थना करने लगते हैं, अंधकार से भरे हुए उस कारागार में चारों और परमात्मा का दिव्य प्रकाश व्याप्त हो जाता है।
मनाया नंदोत्सव
माता देवकी चतुर्भुज रूप को देखकर गदगद कंठ से भगवान से प्रार्थना करती हैं कि आप यदि मेरे पुत्र के रूप में प्रकट हुए हैं, तो इस चतुर्भुज रूप को त्याग कर, नन्हें शिशु के रूप में आप आ जाइए, जिससे कि मुझे मातृत्व का अनंत सुख प्राप्त हो सके। माता देवकी की प्रार्थना सुनकर भगवान ने अपना चतुर्भुज रूप त्यागकर एक सामान्य शिशु का स्वरूप धारण कर लिया। वासुदेव जी उस अर्ध रात्रि के अंधकार समय में कन्हैया को लेकर यमुना पार कर गोकुल की ओर प्रस्थान कर जाते हैं।
प्रात: काल जब नंद बाबा के यहां पर नंदोत्सव मनाया जाता है, तो चारों ओर आनंद की वृष्टि होने लगती है। मिष्ठान वितरण होने लगता है, मंगल गीत माताएं बहने गाने लगती हैं, चारों ओर बृज में आनंद छा जाता है।
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को कथा स्थल पर भी धूमधाम से मनाया गया।