वर्ष 1975 में बारना बांध का निर्माण हुआ था। तब बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे गांवों, जमीनो को खाली कराया गया था। सरकार ने १६ गांवों के लोगों को विस्थापित कर बसा तो दिया, लेकिन उन्हे पट्टे आज तक नहीं दिए। आज इन 16 गांवों में लगभग 17 हजार मतदाता हैं। जो पट्टे नहीं तो वोट नहीं के बेनर लगाकर चुनाव का बहिस्कार करने की चेतावनी दे रहे हैं।
बारना बांध को बने 43 साल हो गए हैं। लेकिन प्रभावित ग्रामीणों की समस्या आज तक हल नहीं हुई। 1975 से 1977 तक कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल रहे। उनके बाद कुछ दिन के लिए सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री रहे। फिर कुछ माह राष्ट्रपति शासन रहा। 1980 से 1990 तक अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस के शान में सुन्दरलाल पटवा पत्राचार करते रहे, सन 1990 से 1992 तक वे खुद मुख्यमंत्री रहे तब दिग्विजय सिंह पत्र व्यवहार करते रहे। इसके बाद फिर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा। 1 दिसंबर 1993 से 8 दिसंबर 2003 तक दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वे इस मामले को भूल गए।
बारना बांध के विस्थापितों के ग्राम सिलारी, चकावाली, खरी टोला, झिरपई, घोड़ा पछाड़, केमबाली, डुंगरिया, पोनिया, कोलापठार, पीपलवाली आदि गांवों में जगह-जगह पट्टा नहीं तो वोट नहीं के बेनर लगे हुए हैं।