scriptमतदाताओं ने दी मतदान के बहिष्कार की चेतावनी | Voters warned of boycott of voting | Patrika News

मतदाताओं ने दी मतदान के बहिष्कार की चेतावनी

locationरायसेनPublished: Oct 08, 2018 09:44:47 am

पांच साल तक लोगों को आश्वासन देकर सरकार चलाने वाले मंत्रियों और नेताओं को अब चुनाव के समय मतदाताओं की लाल आंखों का सामना करना पड़ेगा।

vote

मतदाताओं ने दी मतदान के बहिस्कार की चेतावनी

रायसेन. पांच साल तक लोगों को आश्वासन देकर सरकार चलाने वाले मंत्रियों और नेताओं को अब चुनाव के समय मतदाताओं की लाल आंखों का सामना करना पड़ेगा।

आचार संहिता लागू होते ही विभिन्न दलों के दावेदार अपनी टिकट पक्की करने की जुगत में लग गए हैं, तो मतदाता नेताओं का वोट मांगने के लिए आने का इंतजार कर रहे हैं। सालों से उलझी समस्याओं को सुलझाने के लिए लोगों ने अब मतदान का बहिष्कार करने की धमकी देना शुरू कर दिया है।
ऐसा एक मामला कुछ दिनो से भोजपुर विधानसभा क्षेत्र में तेजी से जोर पकड़ रहा है। जहां लगभग १६ गांव के लोगों ने पट्टे की मांग को लेकर चुनाव का बहिष्कार करने का ऐलान किया है।

पट्टा नहीं तो वोट नहीं के बेनर अपने गांवों में जगह-जगह लगाकर नेताओं को चेता रहे हैं। हालांकि ग्रामीणों का यह विरोध आचार संहिता लागू होने के पहले से जारी है, लेकिन किसी जनप्रतिनिधि, नेता या अधिकारी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
अब चुनावों की घोषणा के बाद मांग तो पूरी नहीं की जा सकती, लेकिन उसे पूरा करने का आश्वासन देना भी नेताओं के बस में नजर नहीं आ रहा है।

ये है पूरा मामला
वर्ष 1975 में बारना बांध का निर्माण हुआ था। तब बांध के डूब क्षेत्र में आ रहे गांवों, जमीनो को खाली कराया गया था। सरकार ने १६ गांवों के लोगों को विस्थापित कर बसा तो दिया, लेकिन उन्हे पट्टे आज तक नहीं दिए। आज इन 16 गांवों में लगभग 17 हजार मतदाता हैं। जो पट्टे नहीं तो वोट नहीं के बेनर लगाकर चुनाव का बहिस्कार करने की चेतावनी दे रहे हैं।

43 साल में हल नहीं हुई समस्या
बारना बांध को बने 43 साल हो गए हैं। लेकिन प्रभावित ग्रामीणों की समस्या आज तक हल नहीं हुई। 1975 से 1977 तक कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल रहे। उनके बाद कुछ दिन के लिए सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री रहे। फिर कुछ माह राष्ट्रपति शासन रहा। 1980 से 1990 तक अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा और श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस के शान में सुन्दरलाल पटवा पत्राचार करते रहे, सन 1990 से 1992 तक वे खुद मुख्यमंत्री रहे तब दिग्विजय सिंह पत्र व्यवहार करते रहे। इसके बाद फिर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन रहा। 1 दिसंबर 1993 से 8 दिसंबर 2003 तक दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहे, लेकिन वे इस मामले को भूल गए।
इस दौरान सांसद रहे शिवराज सिंह चौहान ने 8 नवंबर 2002 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को इस समस्या को हल करने के संबंध में पत्र लिखा। लेकिन खुद मुख्यमंत्री बनने के बाद वे भी भूल गए। यह क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा व उनके बाद सुरेंद्र पटवा का विधानसभा क्षेत्र है। ग्रामीणों की मांग जस की तस है।
इन गांवों में उठे विरोध के स्वर
बारना बांध के विस्थापितों के ग्राम सिलारी, चकावाली, खरी टोला, झिरपई, घोड़ा पछाड़, केमबाली, डुंगरिया, पोनिया, कोलापठार, पीपलवाली आदि गांवों में जगह-जगह पट्टा नहीं तो वोट नहीं के बेनर लगे हुए हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो