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वार्ड वही, मगर अब चुनौतियां और उम्मीदें बढ़ीं

locationरायसेनPublished: Jun 26, 2022 11:44:34 pm

28 साल पहले खुद बने थे पार्षद, अब अपनी पत्नी को अध्यक्ष बनाने उतारा मैदान में

सड़क, पानी, बिजली, पानी, नाले जैसी समस्याएं पहले भी थीं आज भी हैं

वार्ड वही, मगर अब चुनौतियां और उम्मीदें बढ़ीं

रायसेन. रायसेन नगर पालिका के लिए 1974 में हुए चुनाव में ऐसे तीन पार्षद चुने गए थे, जो इस बार हो रहे चुनावों में भी खुद या पत्नी के लिए वोट मांग रहे हैं। तब और अब के चुनावों में खासा फर्क आ गया है, भले ही इनके वार्ड वहीं हों, लेकिन चुनौतियां और उम्मीदें बढ़ गई हैं। पहले से पार्षद बनने के लिए चुनाव लड़े थे और जीते भी थे, लेकिन अब अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। 1966 में पहली बार नपा अध्यक्ष चुने जाने के बाद 1974 से 1994 तक नपा प्रशासक के हाथ रही। 20 साल के अंतराल के बाद जब चुनाव हुए थे, तब वार्ड 04, 09 और 13 से चुने गए पार्षद आज फिर मैदान में हैं, हालांकि इनमे से दो अपनी पत्नियों को चुनाव लड़ा रहे हैं। इस बार फिर अध्यक्ष का चुनाव पार्षदों को करना है, ऐसे में अध्यक्ष पद के दावेदारों के लिए जनता से अधिक महत्वपूर्ण पार्षद हो गए हैं। विशेषकर इन तीनों नेताओं के लिए जो एक ही दल भाजपा से हैं। अध्यक्ष की दावेदार हैं और तीनों अपने वार्ड में विरोधियों से घिरी हैं।

तब-अब एक ही नारा
1974 में शहर की आबादी अब की तुलना में आधी भी नहीं थी। तब भी शहर विकास के लिए छटपटा रहा था और आज भी। भले ही प्राथमिकताएं बदल गई हों, सड़क, पानी, बिजली, पानी, नाले जैसी समस्याएं पहले भी थीं आज भी हैं। अब विकास के मापदंड आधुनिक सुख सुविधाओं पर तौले जा रहे हैं, हालांकि शहर आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। वर्तमान चुनाव के हालात ऐसे बन गए हैं कि विकास को लेकर कहीं कोई बात नहीं हो रही है, केवल अपना वार्ड जीतने और उसके लिए जोड़-तोड़ ही चुनाव अभियान बन गया है। विकास की बात प्रत्याशी से हटकर जनता की आवाज बन गई है।

28 साल बाद इनकी साख दाव पर
वार्ड 13 से पार्षद प्रत्याशी सविता सेन के पति जमना सेन 1974 में उपाध्यक्ष बने थे और पिछली परिषद के अध्यक्ष रहे हैं, अब वे पत्नी को अध्यक्ष बनाने की फिराक में हैं। जबकि वार्ड नौ से नीति पंडया पार्षद का चुनाव लड़ रही हैं, उनके पति दीपक पंडया 1974 में पार्षद बने थे। वार्ड चार से भैयालाल कुशवाहा की पत्नी बेनी देवी कुशवाहा पार्षद का चुनाव लड़ रही हैं, जो 1974 में पार्षद चुनी गई थीं। अब परिस्थतियां कठिन हैं। अव्वल तो जीतने की चुनौती है, उसके बाद अध्यक्ष बनने की राह और भी कठिन है। जाहिर है वार्डों की जनता 1974 के कार्यकाल को भी याद करेगी।

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