तब-अब एक ही नारा
1974 में शहर की आबादी अब की तुलना में आधी भी नहीं थी। तब भी शहर विकास के लिए छटपटा रहा था और आज भी। भले ही प्राथमिकताएं बदल गई हों, सड़क, पानी, बिजली, पानी, नाले जैसी समस्याएं पहले भी थीं आज भी हैं। अब विकास के मापदंड आधुनिक सुख सुविधाओं पर तौले जा रहे हैं, हालांकि शहर आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। वर्तमान चुनाव के हालात ऐसे बन गए हैं कि विकास को लेकर कहीं कोई बात नहीं हो रही है, केवल अपना वार्ड जीतने और उसके लिए जोड़-तोड़ ही चुनाव अभियान बन गया है। विकास की बात प्रत्याशी से हटकर जनता की आवाज बन गई है।
28 साल बाद इनकी साख दाव पर
वार्ड 13 से पार्षद प्रत्याशी सविता सेन के पति जमना सेन 1974 में उपाध्यक्ष बने थे और पिछली परिषद के अध्यक्ष रहे हैं, अब वे पत्नी को अध्यक्ष बनाने की फिराक में हैं। जबकि वार्ड नौ से नीति पंडया पार्षद का चुनाव लड़ रही हैं, उनके पति दीपक पंडया 1974 में पार्षद बने थे। वार्ड चार से भैयालाल कुशवाहा की पत्नी बेनी देवी कुशवाहा पार्षद का चुनाव लड़ रही हैं, जो 1974 में पार्षद चुनी गई थीं। अब परिस्थतियां कठिन हैं। अव्वल तो जीतने की चुनौती है, उसके बाद अध्यक्ष बनने की राह और भी कठिन है। जाहिर है वार्डों की जनता 1974 के कार्यकाल को भी याद करेगी।