पूरी पहाड़ी का जल होता है संरक्षित
बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए अपनाई गई तकनीक से पूरी पहाड़ी पर गिरने वाला पानी किले के अंदर बने टांकों और आस-पास बने तालाबों में पहुंचता है। अलग-अलग महलों की छतों का पानी एक जगह जमा करने के लिए भूमिगत नालियां बनाई गई हैं। बारिश के दिनों में छत का पानी इन्हीं नालियों से होता हुआ तालाब, टांकों और भूमिगत टैंकों में पहुंचता है। किले के चारों तालाब मदागन, धोबी, मोतिया और डोला-डोली तालाब सहित कई टांके एवं रानी महल स्थित रानीताल में पानी भरता है। किले के प्रत्येक महल, निवास और भवन के नीचे मिले अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां जल संग्रह के लिए भूमिगत कुंड भी बने थे।
किले के नीचे सारे उपाय बेकार
किले से नीचे बसे रायसेन शहर में हर साल गर्मियों में जलसंकट होता है। यहां सरकार, नगर पालिका ने कई उपाय किए, लेकिन पानी को बचाने में सफल नहीं हुए। शहर में आठ तालाब हैं, लेकिन सूखे हैं। शहर में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग के प्रयास केवल औपचारिक हुए हैं, जबकि इसी तकनीक को आठ सौ साल पहले अपनाकर किले पर पानी का भंडारण किया जाता था, जो सैकड़ों साल बाद भी सुरक्षित और कामयाब है। रायसेन में 10 हजार से अधिक मकान हैं, जिनमें मात्र सौ-डेढ़ सौ मकानों में ही वाटर हार्वेस्टिंग को अपनाया गया है। अन्य में बारिश का पानी सहेजने की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकारी भवनों में भी रूफ वाटर हार्वेस्टिंग की आधुनिक तकनीक दम तोड़ रही है। यही कारण है कि शहर के लोगों को पीने के लिए पानी हलाली बांध से लाना पड़ रहा है।