कथा व्यास पं. राकेश तिवारी ने कहा कि पुरुषोत्तम मास में श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना और कथा का आयोजन करना परम पुण्य का कार्य है। लक्ष्मी नारायण सोनी द्वारा यह आयोजन कर हमें कथा कहने और सुनने का अवसर दिया है। इसके के लिए लक्ष्मी सोनी, छाया सोनी, चिरंजीव उपेंद्र सोनी, केशव सोनी, पुत्र वधुएं प्रीति, प्रिय और पौत्र-पौत्रियां धन्यवाद और आशीर्वाद की पात्र हैं। ईश्वर उनको सुख समृद्धि प्रदान करें।
कथा के समापन अवसर पर कथा व्यास ने आशीर्वाद के साथ प्रसाद का वितरण किया। इस अवसर पर नगर एवं आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं सहित राकेश तिवारी महाराज के शिष्यों ने कथा का श्रवण कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
कथा के समापन अवसर पर कथा व्यास ने आशीर्वाद के साथ प्रसाद का वितरण किया। इस अवसर पर नगर एवं आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुओं सहित राकेश तिवारी महाराज के शिष्यों ने कथा का श्रवण कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
समर्पण से होती है भगवत प्राप्ति: केशव गुरु
रायसेन. भगवान के चरणों में सर्वत्र समर्पण करने से ही भगवान की प्राप्ति संभव है। भागवत की आचार्या गोपी हैं, इन्होंने अपने प्रत्येक कार्य में श्री कृष्ण के दर्शन आनंद की प्राप्ति की। मन में राग, द्वेष, अहंकार रख कर भगवान की आराधना करना व्यर्थ है। यह बात स्थानीय बड़ा मंदिर में चल रही भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव, नामकरण, माखन चोरी लीला के विभिन्न प्रसंगों को सुनाते हुए पंडित केशव शास्त्री ने कही।
उन्होंने बताया कि सबका अपना-अपना स्वभाव होता है, बिच्छू डंक मारता है, सांप डसता है, गाय दूध देती है। सब कर्म अनुसार स्वभाव लेकर आते हैं ना उनकी प्रशंसा करें ना निंदा। प्रकृति व आत्मा दोनों द्रष्टि से विचार करें, तो सब परमात्मा के अंश हैं। इनके गुण दोषों में उलझ कर हम अपने स्वाभाविक कर्म को भूल जाते हैं।
रायसेन. भगवान के चरणों में सर्वत्र समर्पण करने से ही भगवान की प्राप्ति संभव है। भागवत की आचार्या गोपी हैं, इन्होंने अपने प्रत्येक कार्य में श्री कृष्ण के दर्शन आनंद की प्राप्ति की। मन में राग, द्वेष, अहंकार रख कर भगवान की आराधना करना व्यर्थ है। यह बात स्थानीय बड़ा मंदिर में चल रही भागवत कथा के पांचवें दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव, नामकरण, माखन चोरी लीला के विभिन्न प्रसंगों को सुनाते हुए पंडित केशव शास्त्री ने कही।
उन्होंने बताया कि सबका अपना-अपना स्वभाव होता है, बिच्छू डंक मारता है, सांप डसता है, गाय दूध देती है। सब कर्म अनुसार स्वभाव लेकर आते हैं ना उनकी प्रशंसा करें ना निंदा। प्रकृति व आत्मा दोनों द्रष्टि से विचार करें, तो सब परमात्मा के अंश हैं। इनके गुण दोषों में उलझ कर हम अपने स्वाभाविक कर्म को भूल जाते हैं।
प्रत्येक जीव में गुण के साथ एक दो दोष अवश्य होते हैं गुण के जैसे सुंदर बालक को माता काला टीका लगाकर नजर से बचाती है, यह भी ऐसा ही है कि दोष देखने वाले स्वयं दोषी हो जाते हैं। गुण देखने वाला गुणी बनने लगता है। अत: काम क्रोध राग द्वेष ईष्र्या मिटाने को ही भागवत धर्म कहा गया है। कथा के पांचवें दिन भगवान की बाल लीलाओं में गोबर के सुंदर गिरिराज बनाकर दूध से अभिषेक किया गया। श्रद्धालुओं ने परिक्रमा कर पूजन आरती संपन्न की। सरस्वती मानस मंडल के अध्यक्ष गोपाल साहू ने बताया कि सोमवार को कृष्ण और रुक्मिणी विवाह में सुंदर बारात वा झांकी के दर्शन होंगे। उन्होंने सभी धर्म प्रेमी बंधुओं से कथा श्रवण कर लाभ लेने की अपील की है।