दरअसल, 20 अक्टूबर से 19 जनवरी तक के लिए फ्लैट भावांतर भुगतान योजना के तहत खरीदारी शुरू की गई है। इसमें सोयाबीन, मक्का सहित अन्य प्रमुख उपज पर निर्धारित बोनस देने की घोषणा तत्कालीन भाजपा सरकार ने की थी। अब योजना की समयावधि खत्म होने को है और अंतरराष्ट्रीय कृषि बाजार में अचानक से उछाल आया और सोयाबीन के भाव बढ़ गए। यानी बढ़े हुए भाव का या तो बड़े और रसूखदार किसानों को लाभ होगा या संग्रहित कर लेने वाले नामी व्यापारियों को? पूरे सीजन के दौरान 2800 से 3000 रुपए प्रति क्विंटल बिकने वाली सोयाबीन का भाव अब 3500 के पार पहुंचा है। अन्य उपज के भी लगभग ऐसे ही हाल हैं। ऐसे ही हालात किसानों को धनिया, प्याज और लहसुन में मिलेंगे। इसमें या तो शासन नाम मात्र का समर्थन मूल्य देकर पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा या फिर किसानों को गुमराह करने की कोशिश की जाएगी। दोनों ही स्थिति में खेती को लाभ का धंधा बनाना तो दूर लागत मूल्य निकाल पाना भी मुश्किल हो रहा है।
दोनों पार्टियां नहीं दे पाईं दाम पर ध्यान
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने बजाए किसानों के दाम बढ़ाने के महज प्रलोभन देने की योजनाएं बनाई हैं। पूरे सीजन में कहीं किसानों की उपज के दाम बढ़ाने का तर्क किसी ने नहीं दिया। नई सरकार ने किसानों का कर्ज माफ तो कर दिया लेकिन उपज के आयात-निर्यात प्रणाली पर कोई विचार नहीं किया न ही कोई ऐसी व्यवस्था की जिससे किसानोंं को अपनी उपज के दाम सही मिल पाएं? ऐसे में पूरी व्यवस्था से किसानों का विश्वास उठता जा रहा है।
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..और 19 तक लागू रहेगी फ्लैट भावांतर
20 अक्टूबर 2018 से की जा रही फ्लैट भावांतर भुगतान के तहत खरीदी 19 जनवरी 2019 तक की जाएगी। हालांकि अधिकतर किसान उपज बेच चुके हैं, लेकिन बचे हुए चुनिंदा किसान मंडियों में पहुंच रहे हैं। बता दें कि वर्तमान सरकार ने योजना को नया स्वरूप देने की योजना बनाई है। पहले प्रति क्विंटल पांच सौ रुपए का बोनस उक्त योजना के जरिए देने की योजना थी। फिलहाल स्पष्ट सुर्कलर जिला प्रशासन के समक्ष सामने नहीं आ पाया है।