बाबा बदख्शानी उर्स राजगढ़ (ब्यावरा) मध्यप्रदेश में 10 से 15 मार्च तक देशभर से लाखों की संख्या में जायरिन आएंगे, इस उर्स में लगातार तीन दिन यानी 10 मार्च से 12 मार्च तक सूफियाना कव्वालियों की महफिल सजेगी, जिसमें देशभर के मशहूर कव्वाल एंड पार्टी एक से बढक़र एक प्रस्तुति देंगे।
जानिये कब क्या होंगे कार्यक्रम
10 मार्च को गुसल शरीफ दोपहर 03 बजे
10 मार्च को लंगर शाम 07 बजे
10 मार्च को महफिल—ए—शमा रात 9 बजे
11 मार्च को लंगर सुबह 07 बजे
11 मार्च को लंगर शाम 07 बजे
11 मार्च को महफिल—ए—शमा रात्री 09 बजे
12 मार्च को लंगर सुबह 09 बजे
12 मार्च को चादर शरीफ दोपहर 3.15 बजे
12 मार्च को लंगर शाम 07 बजे
12 मार्च को महफिल—ए—शमा रात 09 बजे
12 मार्च को रंग की महफिल सुबह 4.30 बजे
12 मार्च को कुल का फतेहा सुबह 05 बजे
13 मार्च को लंगर सुबह 09 बजे
13 मार्च को मीलाद शरीफ दोपहर 2.30 बजे
15 मार्च को गुसल शरीफ दोपहर 03 बजे
एशिया के पांच बड़े उर्स में शामिल
बाबा बदख्शानी की दरगाह पर वर्ष 1914 से उर्स लग रहा है। इन 109 सालों में जैसे-जैसे श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे सुविधाओं और उर्स का भी विस्तार होता गया। बताया जाता है कि राजगढ़ में लगने वाला उर्स एशिया के पांच उर्सो में से एक है और यहां प्रदेश ही नहीं देश-विदेश से लोग शामिल होने आते हैं।
राजगढ़ नगर में बाबा बदख्शानी की दरगाह पर लगने वाले उर्स का इस बार 109वां साल है। उर्स की शुरूआत शुक्रवार 10 मार्च से होगी। देशभर में प्रसिद्ध उर्स की रस्मों की औपचारिक शुरूआत 23 फरवरी से कलश उतराई की रस्म के साथ हो गई थी। 10 मार्च को होने वाली गुसल शरीफ की रस्म के बाद उर्स की विधिवत शुरूआत हो जाएगी। कमेटी के पूर्व सदर शफीक गामा ने बताया कि 10 से 15 मार्च तक चलने वाले उर्स की सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं। इस बार उर्स में दो लाख से अधिक जायरीनों के आने की संभावना जताई जा रही है।
उर्स में आने वाली भीड़ को देखते हुए उर्स में सुरक्षा और जायरीनों की सुविधा के लिए व्यापक तैयारी की गई है। उर्स की शुरूआत में अब सिर्फ 1 दिन शेष हैं। ऐसे में मुख्य दरगाह स्थल सहित दरगाह परिसर के मुख्य द्वार पर आकर्षक विद्युत सज्जा की गई है। वहीं उर्स के साथ लगने वाले मेले के लिए दुकानों के आवंटन और दुकानें लगने की तैयारी पूरी हो गई है। उल्लेखनीय है कि उर्स के दौरान दरगाह पर होने वाले परंपरागत और मजहबी आयोजन 10 से 15 मार्च तक होंगे। लगातार 37 सालों तक मंदिर से मस्जिद तक जाने वाली चादर और दरगाह से मंदिर तक पहुंचने वाले झंडे की परंपरा बीते 2 सालों से बंद है। कोई इसे कोविड का असर बताता हैं तो कुछ लोगों का कहना हैकि जिन सदस्यों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी उनमें से अधिकांश लोग अब बुजुर्ग हो गए हैं। जिस कारण उन्होंने इस आयोजन से दूरी बना ली और अब यह परंपरा खत्म हो गई।