9 दिन तक जालपा देवी मंदिर पर लगेगा भक्तों का मेला ..उल्टा सातिया बनाने से होती है मांगी मुराद पूरी
राजगढ़। आज गुड़ी पड़वा के साथ ही चैत्र की नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी राजगढ़ ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े क्षेत्र में प्रसिद्ध मां जालपा देवी के मंदिर पर घट स्थापना के साथ ही भक्तों का मेला लगना शुरू हो जाएगा।
बता दें कि मां जालपा देवी के मंदिर पर मान्यता है कि जो भी यहां उल्टा सातिया बनाकर जाता है और जो मुराद मांगता है उसकी मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि मंदिर पर हर साल हजारों की संख्या में उल्टी और सीधे साथिया बने हुए नजर आते हैं, जो इस बात का सबूत है कि हर साल यहां आने वाले भक्तों में कितने लोगों की मुरादे पूरी होती हैं।
खुद प्रकट हुई मां की मूर्ति
जल मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर सालों पुराना है और पहाड़ी पर बैठी मां जालपा देवी की मूर्ति खुद प्रकट हुई थी और 16वीं शताब्दी तक इस मंदिर में भील राजा पूजा करते आए हैं और प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भी भील राजाओं के माध्यम से ही कराई गई थी। बाद में उमठ़ परमार वंश के राजाओं का राज राजगढ़ में आया। जिसके बाद मां जालपा देवी पर यहां के राजा भी पूजन करने जाने लगे अब कलेक्टर के अधीन एक ट्रस्ट है, जो इस मंदिर का संचालन करता है। पहले यहां पहाड़ी पर ही मां को प्रसन्न करने के लिए बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती थी। लेकिन जबसे ट्रस्ट की स्थापना हुई ऊपर किसी भी तरह की बलि देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यही कारण है कि सिर्फ पहाड़ पर पूजन कराने के बाद नीचे ही बलि दी जाती है।
राजगढ़। आज गुड़ी पड़वा के साथ ही चैत्र की नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी राजगढ़ ही नहीं बल्कि आसपास के बड़े क्षेत्र में प्रसिद्ध मां जालपा देवी के मंदिर पर घट स्थापना के साथ ही भक्तों का मेला लगना शुरू हो जाएगा।
बता दें कि मां जालपा देवी के मंदिर पर मान्यता है कि जो भी यहां उल्टा सातिया बनाकर जाता है और जो मुराद मांगता है उसकी मुराद पूरी होती है। यही कारण है कि मंदिर पर हर साल हजारों की संख्या में उल्टी और सीधे साथिया बने हुए नजर आते हैं, जो इस बात का सबूत है कि हर साल यहां आने वाले भक्तों में कितने लोगों की मुरादे पूरी होती हैं।
खुद प्रकट हुई मां की मूर्ति
जल मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर सालों पुराना है और पहाड़ी पर बैठी मां जालपा देवी की मूर्ति खुद प्रकट हुई थी और 16वीं शताब्दी तक इस मंदिर में भील राजा पूजा करते आए हैं और प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा भी भील राजाओं के माध्यम से ही कराई गई थी। बाद में उमठ़ परमार वंश के राजाओं का राज राजगढ़ में आया। जिसके बाद मां जालपा देवी पर यहां के राजा भी पूजन करने जाने लगे अब कलेक्टर के अधीन एक ट्रस्ट है, जो इस मंदिर का संचालन करता है। पहले यहां पहाड़ी पर ही मां को प्रसन्न करने के लिए बकरे और मुर्गे की बलि दी जाती थी। लेकिन जबसे ट्रस्ट की स्थापना हुई ऊपर किसी भी तरह की बलि देने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यही कारण है कि सिर्फ पहाड़ पर पूजन कराने के बाद नीचे ही बलि दी जाती है।