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भोपाल में ब्रिज दरका, रोड पर जमीन नहीं मिली, डेडलाइन भी होने को है पूरी, तीन साल में 30 किमी काम भी पूरा नहीं

locationराजगढ़Published: Dec 14, 2019 05:06:29 pm

– भोपाल-ब्यावरा फोरलेन bhopal biaora fore lane , खत्म नहीं हो रही भोपाल रोड की मुश्किलें – 19 जनवरी 2020 है टेंडर में डेडलाइन, भोपाल में ब्रिज बनाने में उलझी कंपनी, बीच के कुछ अतिक्रमण भी बन रहे बाधक

भोपाल में ब्रिज दरका, रोड पर जमीन नहीं मिली, 19 जनवरी को डेडलाइन भी पूरी, तीन साल में 30 किमी काम भी पूरा नहीं

भोपाल में ब्रिज दरका, रोड पर जमीन नहीं मिली, 19 जनवरी को डेडलाइन भी पूरी, तीन साल में 30 किमी काम भी पूरा नहीं

ब्यावरा. 106 किलोमीटर का भोपाल-ब्यावरा रोड… तीन साल पहले 1086.48 करोड़ रुपए केंद्र से स्वीकृत भी… ईपीसी मोड में काम भी फाइनल हो गया… 31 जनवरी 2017 को टैंडर फाइनल भी हो गया… और अब 19 जनवरी 2020 को रोड की डेड लाइन खत्म होने वाली है लेकिन हकीकत में इन तीन सालों में 30 किमी का फोरलेन भी फाइनल नहीं हो पाया है।
दिल्ली की सीडीएस (सेंट्रो डॉरस्ट्रॉय) कंपनी को टेंडर मिलने के बाद शुरू से ही प्रोजेक्ट उलझा सा रहा। न रोड की क्वालिटी ढंग की रही न ही काम को रफ्तार मिल पाई। इसी साल बारिश में भोपाल में मुबारकपुर जंक्शन के पास लगभग पूरा हो चुका ब्रिज दरक गया, उसे दोबारा बनाने के फेर में काम फिर उलझ गया।
बचे हुए ब्यावरा तक के हिस्से में कहीं अतिक्रमण हो रहा है तो कहीं शासन जमीन मुहैया नहीं करवाया पाया। इससे पूरे रोड पर कहीं भी फोरलेन जैसा काम पूरा ही नहीं हो पाया है। करीब 30 से अधिक डायर्वशन ब्यावरा से भोपाल के बीच में हो रहे हैं, लगता ही नहीं कि रोड बन भी रहा। साथ ही गुणवत्ता पर भी हर दिन सवाल खड़े हो रहे हैं।
अब हालात यह है कि दोबारा समयावधि बढ़़ाने के बाद काम को गति दी जाना है। कंपनी की धीमी रफ्तार और लापरवाही के साथ ही एनएचएआई की अनदेखी भी इसके लिए जिम्मेदार है। वहीं, जिला प्रशासन का सुस्त रवैया भी राजधानी से जिले को जोडऩे वाले इस महत्वपूर्ण रोड को ठंडे बस्ते में डाल रहा है।
क्वालिटी गांवों के प्रधानमंत्री रोड से भी बदतर
वर्ष-2017 में निर्माण के दौरान से ही भोपाल रोड की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। इसे लेकर विधायक गोवर्धन दांगी खुद प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन फिर भी हालात नहीं सुधरे। जगह-जगह पुराने रोड पर ही नये रोड की परत चढ़ा दी गई। कई जगह रोड उबड़-खाबड़ बना दिया गया।
साथ ही सीसी भी ढंग की नहीं की गई। इसके पीछे निर्माण एजेंसी का तर्क है कि हमें रिटेंडर हुआ है और जैसा ड्राइंग में हमें बनाकर देना है उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। ऐसे में रोड का पूरा काम भगवान भरोसे ही चल रहा है जिसका आंकलन एनएचएआई भी समय पर नहीं कर पाती।

जानें किन मुश्किलों से गुजरा भोपाल रोड
– 2012 में हैदराबाद की टांसट्रॉय कंपनी काम छोड़कर गई।
– 05 साल गड्ढे, धूल, कीचड़ झेलती रही जनता।
– 1086 करोड़ से रोड बनना 2017 में तय हुआ।
– 03 साल में 30 किमी भी फाइनल नहीं हो पाया।
– 30 से अधिक डायवर्शन अभी भी रोड पर।
– 08 किमी हिस्से में जमीन ही नहीं मिली।
कंपनी का तर्क : टेंडर के समय नहीं मिली थी 90 प्रतिशत जमीन…
लेटलतीफी को लेकर सीडीएस का तर्क है कि जब टेंडर फाइनल हुआ था उस समय में 90 प्रतिशत जमीन अलॉटमेंट नहीं हुआ था इसीलिए काम रफ्तार नहीं पकड़ पाया।
नियमानुसार 90 प्रतिशत जमीन अलॉट होने के बाद ही काम शुरू होता है। अब कुरावर में कुछ जमीन के मामले अटके हैं, बचे हुए 100 किमी के हिस्से में भी आठ से 10 किमी में जमीन का मामला अटका हुआ है। इसी कारण काम रफ्तार नहीं पकड़ पा रहा। कंपनी की पीड़ा है हम सीधे जिला प्रशासन से बात नहीं कर सकते, वहीं, एनएचएआई ने भी इसे ढील दे रखी है इसीलिए काम गति नहीं पकड़ पा रहा।
समय बढ़ाकर करेंगे काम
जमीन की दिक्कत शुरू से बनी हुई है, इसीलिए रोड गति नहीं पकड़ पा रहा। डेडलाइन बढ़ाकर ही काम करना पड़ेगा। क्वालिटी का ऐसा है कि इस बार बारिश अधिक हुई इसलिए जगह-जगह के डायवर्शन और उखड़ा हुआ रोड है। उसे सुधारना भी प्रोजेक्ट का ही हिस्सा है। अब थ्री-डी का प्रकाशन हो चुका है, जल्द जमीन अवॉर्ड होगी हम काम पूरा कर देंगे।
– एसएस झा, प्रोजेक्ट मैनेजर, सीडीएस, भोपाल-ब्यावरा रोड
कर रही है कंपनी अपना काम
भोपाल में ब्रिज का काम सीडीएस से हमने दोबारा करवाया है। वह अब रिकवर कर भी रही है। जहां तक बचे हुए प्रोजेक्ट की बात है तो वह भी पूरा करेगी। हां, डेडलाइन जरूर पूरी हो चुकी है, इसलिए एक्सपेंशन उन्हें लेना होगा लेकिन क्वालिटी से कोई कंप्रोमाइज नहीं होगा। हम पूरी मॉनीटरिंग कर रहे हैं।
– विवेक जायसवाल, रीजनल मैनेजर, एनएचएआई, भोपाल

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