चाहे प्याज हो या सोयाबीन, जिस भी उपज को शासन प्रोत्साहन राशि की तर्ज पर या किसी भी योजना के भरोसे खरीदता है तब खरीदी की समयावधि में मार्केट में भी संबधित उपज के भाव कम रहते हैं। जैसे ही योजना खत्म होती है तो भाव बढ़ जाते हैं और जरूरतमंद किसान जो उपज बेच चुके होते हैं उन्हें इसका लाभ नहीं मिलता। बड़े बिचौलियों की इसमें चांदी हो जाती है। साथ ही जिस प्रोत्साहन राशि को देने का दावा सरकारें करती हैं वह भी समय पर नहीं मिल पाती। इससे न किसान को उपज का सही दाम मिलता है ना ही शासन की योजना का लाभ।
मुख्यमंत्री प्याज प्रोत्साहन योजना-२०१९ के तहत शासन स्तर पर होने वाली खरीदी एक से 30 जून तक जिले की तीन मंडियों नरसिंहगढ़, सारंगपुर और जीरापुर में की जाएगी। इसके लिए 20 मई से पंजीयन शुरू हुए हैं जो कि 31 तक होंगे। इन 10 दिनों में जो पंजीयन होंगे उन्हीं किसानों को योजना का लाभ मिलेगा। आचार संहिता के कारण १९ मई तक पंजीयन पर चुनाव आयोग ने रोक लगाई थी, इसीलिए न ढंग से प्रचार-प्रसार हो पाया ना ही किसानों को इसकी जानकारी मिल पाई। आठ सौ रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के हिसाब से अंतर राशि का बोनस संबंधित किसान को देने का दावा शासन ने किया है। किसानों के साथ यह हमेशा की विडंबना रही है कि जब भी किसी उपज की मात्रा बढ़ती है तो उन्हें सही भाव नहीं मिल पाता। नासिक (महाराष्ट्र) के प्याज की आवक बढऩे से भी यह असर हुआ है। हालांकि जिले में भी पिछले साल की अपेक्षा इस बार दो हजार हेक्टेयर की बढ़त हुई है और इसी साल में भाव नहीं मिल पा रहे।