जानकारी के अनुसार रिपोर्टपॉजिटिव आने के बाद घरों में रहने या कोविड केयर सेंटर पर जाने के बजाए पॉजिटिव मरीज अस्पताल में घूमते रहे हैं।उन्हें न खुद की परवाह होती है न ही साथवालों की और न ही अस्पताल मेंउपचार के लिएजाने वाले अन्य मरीजों की। हाल ही में एक पॉजिटिव मरीज के साथतीन-चार लोग अस्पताल पहुंचे, वे इस हिसाब से मरीज के साथघूम रहे थे कि जैसे कुछ ही न हो? इसीलिएसंक्रमणकी रफ्तार तेज हो रही है, लगातार लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं। लेकिन प्रशासनिक प्रयास इसे लेकर नाकाफी है, इसलिए लोग लापरवाह और बेपरवाह हो गए हैं।
कलेक्टर के निर्देशों का भी पालन नहीं कर रहा अधीनस्थ स्टॉफ
कलेक्टर ने बीते दिनों टीएल बैठक में दो टूक निर्देश दिएथे कि आरआरटी टीम (नपा, प्रशासन की संयुक्त) लगातार होम आइसोलेशन वालों का फॉलोअप करेगी लेकिन किसी भी दिन कोई भी टीम जाकर इसका फॉलोअप नहीं लाई? यदि टीम गंभीर होती तो ऐसे पॉजिटिव मरीज बाजार या अस्पतालों में नहीं घूमते। बता दें कि गंभीर मरीजों के लिएकोविड केयर सेंटर जाने की सुविधा होती है लेकिन ए-सिम्प्टोमैटिक पॉजिटिव मरीज बिना किसी डर के बेखौफ शहर में घूम रहे हैं जिन्हें किसी की परवाह नहीं है।न ही स्थानीय प्रशासन के कर्मचारियों, अधिकारियों को अपने अधीनस्थ अफसरों के निर्देशों की परवाह।
पॉजिटिव आने के बाद भी मरीज अस्पताल आ गया, मैं वहां से निकला तो रास्ते में ही वह बात-चीत करने लगा।जहां मैंने उसे समझाया कि प्रोटोकॉल का पालन करें और 14 दिन घर में ही रहें। ऐसे अन्य कईकेसेस हर दिन अस्पताल में सामने आते हैं, पता नहीं कौन सा मरीज हमारे सामने आ जाएऔर पॉजिटिव होकर सलाह लें? ऐसे में सतर्क रहने की बेहद जरूरत है, पॉजिटिव आने वालों को भी प्रोटोकॉल का पालन करना होगा, तभी हम इसकी चैन तोड़ पाएंगे।
-डॉ. लखन दांगी, मेडिकल ऑफिसर, सिविल अस्पताल, ब्यावरा
उन्हें रोकना प्रशासन का काम, हमारा नहीं
कोविड कंट्रोल रूम से हमारी टीम सुबह-शाम पॉजिटिव मरीज का रिव्यू लेती है। वीडियो कॉल भी करती है लेकिन जिनके पास वीडियो कॉल की सुविधा नहीं है उनकी बात फोन पर ही मान ली जाती है। हम एसडीएम, तहसीलदार को बकायदा सूची देते हैं, यह प्रशासन का काम है कि वह घर से बाहर कैसे निकल रहे। इस तरह से मरीजों का बाहर निकलना खतरनाक है, प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि उन पर नजर रखें, कार्रवाई करें।
-डॉ. एस. यदू, सीएमएचओ, राजगढ़