इनवर्टर का बेकअप मुश्किल से आधे घंटे ही रहता है, जबकि एक मरीज डायलेसिस में कम से कम तीन घंटे तक का समय लगता हैं। ऐसे में जब भी डायलेसिस के बीच बिजली जाती है, तो न सिर्फ मरीजों, बल्कि मौके पर मौजूद टेेक्नीशियन की परेशानी बढ़ जाती हैं।
हालांकि ऐसा बहुत कम होता हैं, लेकिन जब भी होता हैं। उस समय मरीज की जान पर भी बन आती हैं। ऐसा नहीं है, इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन को कोई जानकारी नहीं हैं। लेकिन इतने गंभीर मामले को भी प्रबंधन ज्यादा तवज्जों देता नजर नहीं आता। यही कारण है कि महिनों से चली आ रही जनरेटर की मांग अभी भी जस की तस बनी हुई हैं।
टेक्निकल रुप से भी कई खामिया
जिले के मरीजों को डायलेसिस जैसी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए दीपचन्द्र डायलेसिस दिल्ली से अनुबंध कर यहां यह सुविधा शुरु कराई गई हैं। लेकिन अधिकांश समय यहां मरीजों को सुविधा नहीं मिल पाती। कोई न कोई कमी के चलते कई बार मरीजों को यहां से बैरंग ही लौटा दिया जाता हैं। बात यही डायलेसिस केन्द्र की करें, तो वार्ड में जहां स्पेस कम है, वही जो आरो सिस्टम लगा है उसकी ऊंचाई भी बहुत कम हैं। जिसके कारण ब्लड सर्कुलेशन तेजी से नहीं हो पाता।
डॉ.आरजे कौशल, सिविल सर्जन जिला चिकित्सालय राजगढ़