राजगढ़ की ही यदि बात करें तो यहां मोकमपुरा, फतेहपुर, टूनी, बाडिया जैसे गांव में फ्लोराइड की मात्रा कुछ ज्यादा ही हो चुकी है। वहीं बानपुर में रहने वाले ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर भी यह तेजी से असर डाल रहा है। हालांकि लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी विभाग यह दावा करें कि विभाग द्वारा फ्लोराइड के विकल्प खोज लिए गए हैं और उन के माध्यम से ग्रामीणों को पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन हकीकत यदि देखें तो गर्मी आने के साथ ही ग्रामीणों को एक बार फिर फ्लोराइड से होने वाले नुकसान का डर सताने लगता है। जिले की यदि बात करें तो यहां 1605 गांव में से 488 गांव में फ्लोराइड बढ़ रहा है। खासकर ऐसे गांव जिनमें निचले स्तर पर कठोर चट्टानें हैं और पानी की मात्रा कम है। वहां फ्लोराइड की मात्रा बढ़ रही है। पिछले समय में पीएचई द्वारा फ्लोराइड को रोकने के लिए कुछ हैंडपंप में फ्लोराइड मुक्त यंत्र लगाए गए थे, लेकिन बे यंत्र भी कुछ दिन बाद खराब हो गए।
कलेक्ट्रेट और स्कूलों का भी यही हाल
जिले में तेजी से बढ़ रहे फ्लोराइड का असर ग्रामीण अंचल के साथ ही अब शहरी इलाकों में भी नजर आने लगा है । जहां उद्योग नगरी पीलूखेड़ी की बात करें तो वहां भी फ्लोराइड की मात्रा बढ़ रही है। वहीं कलेक्ट्रेट में लगाए गए ट्यूबवेल में भी फ्लोराइड बताया गया। यही कारण है कि वहां प्रतिदिन टैंकरों से पानी की सप्लाई की जाती है। यही हाल शहर के पुरा मोहल्ला का भी है।
पीने योग्य नहीं होता पानी
जानकार बताते है कि फ्लोराइड की मात्रा 1.5 तक पीने योग्य होता है, लेकिन इससे जरा भी अधिक फ्लोराइड यदि हो तो वह पानी पीने योग्य नहीं है। फ्लोराइड का सबसे ज्यादा असर छोटे बच्चों के दांतों और हड्डियों पर पड़ता है। लगातार इस पानी के पीने से दांत टूटने और झडऩे के साथ ही हड्डियां टेड़ी होने लगती हैं।
मोहनपुरा-कुंडलिया से सुधरेगा जलस्तर
मोहनपुरा और कुंडलिया जैसे बड़े डेमों के निर्माण के साथ ही इनसे निकलने वाली नहरों का असर आने वाले दिनों में यहां के जलस्तर पर पड़ेगा। लेकिन जब तक नहरें चालू नहीं होती तब तक परेशानी रहेगी।