जिले में पिछले पांच वर्षों में ऐसे 37 बच्चे मिल चुके हैं। इनकी उम्र 0 से लेकर 6 साल तक है। इनमें से 32 बच्चों को कोई न कोई माता-पिता मिल गए और अब वह अच्छे परिवार में रह रहे हैं, लेकिन 5 बच्चे अभी भी ऐसे हैं, जिन्हें माता पिता का इंतजार है। 2 बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं. जो 5 बच्चे अभी किसी ने गोद नहीं लिए उनमें से चार लड़के हैं।
पिता ने ही कर दिया त्याग
वर्तमान में जो बच्चे यहां हैं, उनमें से एक बच्चे की मां की मौत हो जाने के कारण उसका पिता ही बच्चे को अस्पताल में छोड़कर चला गया. इसके बाद से उसका इलाज अस्पताल में किया जा रहा है।
वर्तमान में जो बच्चे यहां हैं, उनमें से एक बच्चे की मां की मौत हो जाने के कारण उसका पिता ही बच्चे को अस्पताल में छोड़कर चला गया. इसके बाद से उसका इलाज अस्पताल में किया जा रहा है।
मंदिर पर मिली और अब करोड़ों की मालकिन बन गई
7 साल पहले जानपा मंदिर पर एक महिला बच्ची को छोड़कर चली गई। तत्कालीन एसडीएम आरपी अहिरवार बच्ची को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंचे। सारी देखरेख और जिम्मेदारी उन्होंने ही संभाली। बच्ची को भोपाल के शिशु ग्रह में छोड़ दिया। यहां से ऑनलाइन आवेदन के बाद जब बच्ची को गोद दिया तो वह बेंगलुरु के एक ऐसे परिवार में गई जो हवाई जहाज के पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री के मालिक थे। इस तरह मंदिर पर मिली बच्ची करोड़ों की मालकिन बन गई. बच्ची को जब गोद ले लिया और उसके मां पिता को जानकारी लगी तो वे दोबारा बच्ची पर हक जताने पहुंच गए। हालांकि यहां तमाम कार्रवाई पूरी करके गोद दी गई बच्ची पर अब उनके माता-पिता का कोई हक नहीं रहा।
7 साल पहले जानपा मंदिर पर एक महिला बच्ची को छोड़कर चली गई। तत्कालीन एसडीएम आरपी अहिरवार बच्ची को लेकर जिला चिकित्सालय पहुंचे। सारी देखरेख और जिम्मेदारी उन्होंने ही संभाली। बच्ची को भोपाल के शिशु ग्रह में छोड़ दिया। यहां से ऑनलाइन आवेदन के बाद जब बच्ची को गोद दिया तो वह बेंगलुरु के एक ऐसे परिवार में गई जो हवाई जहाज के पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री के मालिक थे। इस तरह मंदिर पर मिली बच्ची करोड़ों की मालकिन बन गई. बच्ची को जब गोद ले लिया और उसके मां पिता को जानकारी लगी तो वे दोबारा बच्ची पर हक जताने पहुंच गए। हालांकि यहां तमाम कार्रवाई पूरी करके गोद दी गई बच्ची पर अब उनके माता-पिता का कोई हक नहीं रहा।
चाइल्ड लाइन के मनीष दांगी के मुताबिक हमें जैसे ही इस तरह के बच्चों की सूचना मिलती है, हम तुरंत ऐसे बच्चों को लेते हुए पुलिस को सूचना करते हैं। और उन बच्चों को अस्पताल तक पहुंचाने का काम करते है। ताकि उचित उपचार मिल सके। आगे की जांच पुलिस के माध्यम से की जाती है।
महिला बाल विकास विभाग राजगढ़ के सहायक संचालक चंद्रसेना भिड़े बताते हैं कि हमारे रिकॉर्ड के अनुसार पिछले 5 सालों में से 30 बच्चे अभी तक इस तरह के मिल चुके हैं। लेकिन अधिकांश बच्चों को माता-पिता मिल गए हैं और वह अच्छा जीवन यापन कर रहे। अभी 5 बच्चे और हैं दिन को गोद लेने की प्रक्रिया की जानी है।