script

घर-आंगन, बगीचों में बीते जमाने की बात हो गई सावन के झूले

locationराजगढ़Published: Jul 26, 2020 05:23:57 pm

परंपराएं बदलीं तो प्रकृति ने भी स्वरूप बदलान अब सावन में झूले दिखते हैं न घर के सामने आंगन, आधुनिकता में फंसे लोग पंपराओं से दूर भाग रहे

घर-आंगन, बगीचों में बीते जमाने की बात हो गई सावन के झूले

घर-आंगन, बगीचों में बीते जमाने की बात हो गई सावन के झूले

गुफरान मंसूरी
उदनखेड़ी (राजगढ़.).एक जमाना था जब सावन का महीना (month of sawan) शुरू होते ही घर, आंगन और व बगीचे में लगे पेड़ों पर झूले लगाकर लोग लुफ्थ उठाते थे लेकिन समय के साथ बगीचे से पेड़ और झूले दोनों गायब होते चले गए।
हालांकि सावन माह आम जनमानस को प्रकृति से जोड़ता है लेकिन दौड़-भाग भरे इस जमाने में प्रकृति के संग झूला-झूलने का वक्त किसी के पास नहीं है। न वह बात अब नजर आती। खासकर ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों सहित बड़े भी सावन के झूलों का लुत्फ नहीं उठा पाते। गावों में झूलों के बिना सावन अधूरा माना जाता था लेकिन अब शहरों के साथ ही गांव में भी सावन में झूले नजर नहीं आते। इसका मुख्य कारण मनोरंजन के नए-नए साध, घरों के सामने के आंगन और पेड़ों का ही खत्म हो जाना है।
सावन शुरू होते ही मायके आने लगती थीं बेटियां
अभी कुछ साल पहले तक ही सावन माह (month of sawan) शुरू होते ही खासकर गांवों में बेटियां अपने मायके आने लग जाती थीं। जहां शादी से पूर्व की अपनी सखियां के साथ सावन में झूले के साथ लोकगीत का आनंद उठाया करती थीं, वो अपने बचपन के बीते दिनों की यादों को ताजा करने ही सावन में घर आती थीं, लेकिन अब इस आधुनिक युग में उनका मिलना-जुलना भी लगभग खत्म सा हो चुका है। गांव की आशाबाई तोमर (65) बताती हैं पहले साल में एक यही समय रहता था जब बेटियां शादी के बाद अपनी बचपन की सखियों से अपने मायके में मिला करती थीं। सावन के आते ही गली-कूचों और बगीचों में मोर, पपीहा और कोयल की मधुर बोली के बीच युवतियां झूले का लुत्फ उठाया करती थीं। अब न तो पहले जैसे बगीचे रहे और न ही मोर की आवाज सुनाई देती है। यानि बिन झूला झूले ही सावन गुजर जाता है।
राधा-कृष्ण झूले थे, तभी से परंपरा जारी
भारतीय संस्कृति (Indian culture) में झूला झूलने की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। भगवान श्रीकृष्ण राधा के संग झूला झूलते थे। मान्यता है कि इससे प्रेम बढऩे के साथ ही प्रकृति से जुडऩे की प्रेरणा मिलती है। सनातन धर्म और हिंदू ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है। उदनखेड़ी निवासी 76 वर्षीय रामगोपाल राठी बताते हैं कि राधा-कृष्ण के प्रेम को जीवन में प्रेम का प्रतीक माना जाता था। गोकुल, वृंदावन में उनके झूला झूलने के किस्से काफी ख्यात रहे हैं। सभी यह बात जानते भी हैं, लेकिन आज की आधुनिक परंपराओं ने इसे ढंक दिया, स्वरूप को ही बदल डाला। अब फिर से उस जमाने को दोहराने का समय है, ताकि सावन को जीवंत किया जा सके।

ट्रेंडिंग वीडियो